वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने विश्व को गहरे संकट में डाल दिया हैं दोस्तों दूसरी तरफ भारत देश में कुचला जा रहा है भारत देश कहने का मेरा मतलब प्रवासी मजदूरों के लिए जो इंडिया के बगल में ही झुग्गी -झोपड़ी में रहता है वही सबसे बड़ी संकट है यह महामारी हैं दूसरी तरफ इंडिया यानी जो महानगरों में रहता है जो अट्टालिकाअो मे रहता हैं यही भारत रोजमर्रा की आवश्यकता पूरा करता है इंडिया का दोस्तो फिर भी इंडिया अपना नहीं रहा है इनको भूखे मरने से अच्छा है पैदल ही घर चलो दोस्तों पिछले दिन देश के प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपए कि आर्थिक पैकेज का ऐलान कीए फिर भी क्यों यह मजदूर अपने घरों की ओर पैदल ही लौट रहे हैं और सड़क हादसे का शिकार हो रहे हैं ? प्रत्येक दिन हमें कहीं ना कहीं से खबर मिल रही है की कल ट्रेन से कटकर इतने मजदूर मारे गए आज ट्रक ने टक्कर मारा और मेरा भारत ऐसे ही मारा जा रहा है सरकार ने ट्रेन की शुरुआत की बहुत अच्छी पहल है लेकिन जो मजदूर वर्ग हैं वह ऑनलाइन कैसे टिकट बुकिंग करेंगे और आज साइबर कैफे भी बंद है इसलिए अधिकतर मजदूर इन झमेले मे ना पड़कर पैदल या किसी अन्य प्रकार की संसाधन से चल दे रहे हैं जैसा कि पिछले दिनों मध्य प्रदेश से पूरा परिवार बैलगाड़ी से चलते हुए आ रहा था रास्ते में थक कर एक बैल मर गया तो उस परिवार का मुखिया ने खुद बैल की जगह गाड़ी खींचने लगा और रास्ते में चलते-चलते थक कर वह व्यक्ति भी मर गया बहुत ही दर्दनाक तस्वीर थी आप सब भी देखे होंगे दोस्तों जब विभाजन हुआ देश का तो हम साधन विहीन थे यह सच है लेकिन इस वैश्विक महामारी के पलायन में संसाधनों की कोई कमी नहीं है लाखों बसे हैं ,ट्रेनें खड़ी है गोदाम भरे हैं फिर भी पैदल भूखे चलते हुए आखिर क्यों हमारा भारत मर रहा हैं भारत यानी मजदूर जो इंडिया के बगल में झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं आखिर क्यों? अब दूसरी ओर हमारा हिंदुस्तान यानी अन्नदाता खेतों में मेहनत इस महामारी में भी कर रह ताकि हमारे देश का कोई भूख से ना मरे वही इंडिया को यानी जो विकसित है बड़े-बड़े महानगरों में रहते हैं बड़े-बड़े अट्टालिकाओ मे रहते जो इंतजार कर रहे हैं कब लॉकडाउन पूरी तरह से खत्म हो और बाहर निकले पार्टी करें मस्ती करें आखिर इतना भेदभाव क्यों जब संविधान के अनुच्छेद -14 में सभी के लिए बराबरी की बात की गई है तो एक ही देश में इंडिया भारत और हिंदुस्तान तीन तरह की व्यवस्था क्यों बनाई गई है मेरे आत्मीय मित्रों हर रोज काल के गाल में समा रहे हैं पैदल घर जाने वाले गरीब मजदूर इस वायरस ने अपने संक्रमण से तो लोगों की जान ले ही रहा है लेकिन साथ में लॉकडाउन के कारण पैदल घर जाने को मजबूर गरीब मजदूर सड़क हादसों में जान गवां रहे हैं क्या यह जवाबदेही सरकार की नहीं है दोस्तों बुधवार को देर रात 60 से अधिक मजदूरों की बस एक्सीडेंट हो गया इसमें 8 से अधिक की मौत हुई आखिर अमीरों द्वारा लाई गई महामारी गरीब मजदूर- कब तक झेलता रहेगा क्या गरीब मजदूर किसान वंचित तबकों के सुरक्षा की जवाबदेही सरकार की नहीं है? दोस्तों आज "मैं काफी गुस्से में लिख रहा हूं सपने एक दर्दनाक हकीकत में तब्दील होने वाले हैं जो घर छोड़ते वक्त देखे थे अपनों से मिलने की जल्दी थी तो दो रोटी के लिए रास्ते में कहीं रुकना मंजूर नहीं था हाथ पर ही खाना रखकर खाते चले जा रहे थे कि अचानक गाडी के पहियों के बीच जिंदगी दबी और पल भर में सब कुछ बिखर गया"आपको विदेशों से लाने के लिए स्पेशल विमान है किसी मॉडल या विशेष व्यक्ति को भेजने के लिए विशेष गाड़ियां और हवाई जहाज है लेकिन जो देश के रीढ है गरीब मजदूर किसान उनके लिए आपका कोई व्यवस्था नहीं है प्रवासी मजदूरों को भेजने के लिए ऑनलाइन टिकट की व्यवस्था करते हैं वह इतना पढ़ा रहा होता तो आपके जैसे साहब नहीं बनता जितने भी हमारे प्रवासी मजदूरों किसानों वंचित लोगों की मौत हो रही है इसका नैतिक जवाबदेही सरकार की है और जवाब देना होगा l
कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया -अंतरराष्ट्रीय चिंतक)
No comments:
Post a Comment