Friday, May 1, 2020

निर्धन परिवार का हूँ

मैं गरीब घर का मजदूर हूँ, 

मैं अपनी रोजी रोटी की तलाश में, 

इधर - उधर भटकता हूँ। 

 

मैं अनेक शहरों में जाकर खून पसीने बहाता हूँ,

जो भी मिलता है उसी से गुजर बसर करता हूँ। 

 

मेरे पैरों में से खून निकलते हैं, 

मैं परवाह नहीं करता हूँ। 

 

मैं अपने परिवार का सहारा हूँ, 

मैं निर्धन घर का मजदूर हूँ। 

 

मैं अपनी मजबूरी की खातिर, 

नहीं पढ़ पाया हूँ। 

 

इसलिए आज दर दर की ठोकरें खाता हूँ, 

मुझे कोई देखने वाले नहीं हैं। 

 

कभी कभी ऐसी नौबत आ जाती है, 

कहीं काम नहीं मिल पाता है। 

 

भूखे रहने पर मजबूर होना पड़ता है, 

मैं भूखे तो रह जाता हूँ, 

मैं अपनी नन्ही परी को भूखे नहीं देख पाता हूँ। 

 

लोग तो हमें खूब मजाक उड़ाते हैं, 

कोई मदद तो नहीं करते हैं। 

 

मैं अपनी मजबूरी को सरकार, 

के पास कहने जाता हूँ, 

सरकार भी सुनकर आनाकानी कर देती। 

 

मैं अपने वोट से सरकार को जिताता हूँ, 

वही सरकार सुनकर नजर अंदाज कर देती है। 

 

मैं अपनी जिंदगी को मजदूरी, 

करते करते काट तो लेता हूँ, 

मैं निर्धन परिवार का मजदूर हूँ। 

मो. जमील

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