मेरे बचपन की यादें भी कितनी निराली थी
चारों और देखी पेड़ पौधों की हरियाली थी
पेड़ पर बैठी चिड़िया सुबह-शाम गाना गाती थी
हर रोज गिलहरी हमारे आंगन में आती थी
फुदक-फुदक कर चिड़ियों संग दाना खाती थी।
मेरे बचपन की यादें भी कितनी निराली थी
सूरज की तपती गर्मी जब दिन दहकाती थी
तब पेड़-पौधों की छांव शीतल सुकून दिलाती थी
उस वक्त हमारी पेड़ों से गजब की दोस्ती थी
दिन भर पेड़ों पर ही हमारी उछल कूद होती थी।
मेरे बचपन की यादें भी कितनी निराली थी
आम जामुन फलों की साही दावत होती थी
बारिश जब आती थी तन मन को जगाती थी
कागज की कश्ती तब हमारी भी चलती थी
नदी नहरों में नहाने की डुबकियां लगती थी।
मेरे बचपन की यादें भी कितनी निराली थी
बाग-बगीचों, खेत-खलिहानों में हरियाली थी
आम के पेड़ों से गुंज कोयल की सुनाई थी
पेड़ और पानी बचाकर बचपन में प्रकृति बसाई थी आओ फिर से पेड़-पौधे लगाकर “पर्यावरण” बचाएं।
रचयिता- प्रकाश कुमार खोवाल (अध्यापक) जिला- सीकर (राजस्थान)
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