करोना की भयावह होती स्थिति के बीच आपकी एक असावधानी कईयो पर भारी पर सकता है।यह आज के ताजे आंकडे को देखने से पता चलता है जहाँ मरीजों की कुल संख्या 91 हजार पार कर चुकी एक दिन में लगभग 5 हजार नये मरीज बढ़ रहे है और मृतको की संख्या 2800 को पार कर रही है।जिस भयावह स्थिति के लिए हमने इतने दिन घर में रहकर लगाईयां लड़ी वह अब कुछ लोगो की नासमझी और मजाकिया लहजे के कारण अंघर में जाता दिख रहा है ।इसके तीन उत्तरदायी है जमाती, पलायन और शराब।
आखिर प्रधानमंत्री के बार बार अपील को नजरअंदाज कर इस महामारी को फैलाना किस प्रकार की सोच है यह समझ से परे है।ऐसे माहौल कई सवाल पैदा करता है क्या लोगो को जीवन से प्यार नही रहा? क्या लोग ही लोगो के दुश्मन है? क्या राजनीति अब लाशों पर होगी? क्या जान से बढ़कर शराब है? जो तस्वीर न्यूज चैनलो पर उभर रही है वह भयावह स्थिति की ओर जाती हमारी जीवन को दर्शा रही है ये शुभ संकेत कतई नही हो सकते।पैदल चलती परेशान जीवन विवशता की समुद्र समेटे हुए है जहाँ इन्सान क्या, हैवान भी कांप जाय? लेकिन कभी ट्रक तो कभी ट्रेन से रौदती मौत आखिर किसकी चूक है यह किसकी जिम्मेदारी बनती थी।इसका जवाब कोई नही देना चाहता। दुख तो तब होता है जब यह स्थिति से सबक न लेकर अभी भी वह स्थिति बरकरार है।
जीवन को राहत के सहारे नही चलाया जा सकता लेकिन विकट होती परिस्थिति के मद्देनजर कुछ संयम तो बरता ही जा सकता है ऐसी सोच शायद नजर नही आती कुछ को विवशताएँ है तो कुछ मजाकिया वही कुछ राजनीति भी है जो अपनी महत्वाकांक्षा की रोटी अवश्य सेंकना चाहती है।लोगो की मदद करने के बजाय अपने अपने वोर्डर पर असमर्थता को प्रदर्शित कर रहे हैं जो चीख चीख कर कहती है ऐ भारत माँ तेरी राजनीतिज्ञ कितनी ओछी है जो ऐसे ऐसे के हाथो में बंदी है जहाँ राजनीति लोगो के जीवन नही लाशो से की जाती है।
ऐसे में जो देश के लिए समर्पित है या कार्य कर रहे है उनके मनोबल का ह्रास होना लाजिमी है।इस पृथक होती मानसिकता सिर्फ पीठ पर वार करना जानती है और इसी मौके की तालाश में रहती है कैसे इस तरह की परिस्थिति पैदा की जाय और चंद सहानुभूति बटोरकर राजनीतिक रोटीयाँ सेंकी जाय।सरकार को ऐसी मानसिकता के लोगो को शीघ्र चिन्हित कर नजरबंद करना चाहिए बयानवीरों को करमवीर बनाकर लोगो के जीवन बचाने का और अधिक प्रयास होना चाहिए।बढ़ते आँकड़े अब विचलित कर रही है।जब तक आंकडे कम नही होंगे तबतक यह लाल सिग्नल में ढील देना कहीं से भी उचित नही लगता जहाँ ऐसे लोग भी है जो आज भी इसे मजाक ही समझ रहे हैं।
आशुतोष
पटना बिहार
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