आदमियों की भीड़ में चेहरे अनोखे देखे
कुछ हँसते तो कुछ रोते देखे
कुछ गुस्से से भरे कुछ बिल्कुल शांत देखे
कुछ के चेहरे पर थी उदासी असीम
तो वहीं कुछ मुस्कराते देखे
आदमियों की भीड़ में......
पुछना चाहा जो मैंने रोतों से
सभी खून के प्यासे देखे
बात की जो उदासी और पीड़ा से तो
सबके सबके रोते देखे
मैंने इक चेहरे पे कई चेहरे वो ढोते देखे
आदमियों की भीड़.....
गुरूर किसी को दौलत का था
कोई हुस्न की चाशनी में डूबा था
कई अपनी जवानी पर इतराते देखे
आदमियों की भीड़ में.....
कुछ महलों में, कुछ झोंपड़े में जीते देखे
कुछ के पास एक कमरा तो कुछ फुटपाथ पे देखे
कुछ खाने से भागते तो कुछ भूखे -प्यासे देखे
आदमियों की भीड़ में.....
कुछ कुर्सी की चाह में लड़ते देखे
कुछ कुर्सी पर ही अड़े देखे
कुछ ने छोड़ी कुर्सी सम्मान में कुछ
बेइज्जत छोड़ते देखे
आदमियों की भीड़ में ....
मैं भी हिस्सा हूँ भीड़ की
इन में से बहुत से चेहरे मैंने खुद के देखे
कुछ खुद ब खुद बदले और
कुछ को जमाने ने बदलवा दिया
मैंने अपने ही चेहरे पर कई चेहरे चढ़ते -उतरते देखे।
रीमा मिश्रा"नव्या"
आसनसोल(पश्चिम बंगाल)
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