आज कल सुनने में मिल जाता है। मिडिया बिक चुका है। क्या आज हमारे देश में सच में मिडिया की स्थिति इतनी बेकार हो गई है, कि चंद रूपयों में उन्होंने हमारे देश की सब से बड़ी ताकत को बेच दिया है। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहें जाने वाला मिडिया क्या सच में देश के लिए निष्पक्ष कार्य नहीं कर रहा है। मिडिया हम सभी जानते हैं। लोकतंत्र का एक ऐसा मजबूत स्तंभ है, जिसके द्वारा हम अन्य तीन स्तंभों में गलत कार्य को होने से रोकते ही नहीं है। यह देश की आम जनता के सब के सब से करीब भी है। मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी आवाज सरकार और कानून व्यवस्था तक पहुंचा सकता है।
आज के समय में किन्तु इसी स्तम्भ को बिका हुआ कह दिया जा रहा है। चलिए अगर हम मान लें हमारा आज का मिडिया बिक गया है और इसको खरीदने वाला कोई और नहीं हमारी सरकार है। तब हमारी और देश की स्थिति क्या होगी?
हमारे मुद्दे और परेशानियों से देश की सरकार हमेशा से ही बचने का प्रयास करतीं हैं। यदि हमारे देश का वह मीडिया बिक गया। जिसके बलबूते पर हम सरकार को आड़े हाथों लेते हुए। यह बताते हैं कि आप केवल चंद सालों के लिए यहां है। हमारे प्रति अपने कर्तव्य निभाने के लिए हमने आप को चूना है अगर आप हमारे लिए कार्य नहीं करेंगे तो आप को हम वोट नहीं देंगे। ऐसी सरकार केवल अमीरों के लिए कार्य करेगी, क्योंकि गरीबों को हमारी सरकार बोझ ही समझती है। अमीरों द्वारा ही वह अधिक लाभ कमा सकतीं हैं, इसलिए ऐसी नितियां बनेंगी। जिससे देश के आम लोगों का विकास नहीं बल्कि अमीरों की तिजोरियां भरेगी। गरीबों व्यक्ति दो वक्त की रोटी के लिए तरस जाएगा और अमीरों के ऊपर जनता की कमाई सरकार लुटाएगी।
सांप्रदायिक तनाव देश को रहने लायक़ नहीं रहने देगा। आम आदमी हर कोशिश करेगा चेन से जीवन जीने के लिए। किन्तु हमारी सरकार उसको हर दिन नए-नए प्रकार के कानून लाकर, सड़क पर ले आएंगी। आम आदमी की मृत्यु भी ऐसे में सरकार को उसकी गलतियों के लिए कटे हरे में नहीं खड़ा कर पाएंगी। इस सब के बावजूद भी आम जनता सरकार को पूजेगी, क्योंकि जिस प्रकार से ढोंगी बाबाओं झूठे जांदू देख कर हमारी जनता पागल बनती है। उसी प्रकार सरकार के बारे में ऐसी झूठी और सच्ची खबरें दिखाई जाएगी। जिससे आप को यह लगे कि इससे पहले ऐसी सरकार कभी नहीं आई। देश मुश्किल हालातों से गुजर रहा होगा। तब भी सरकार की कामयाबी के गुण गए जाएंगे।
यदि यही मीडिया विपक्ष के हाथों बिका हुआ हो, तब सरकार की हर नीति और कार्य को ग़लत कहा जाएगा। कोई भी ऐसा मौका नहीं होगा, जब सरकार को बूरा कहें जाने में मीडिया पीछे रह जाएगा।
यह तो बात हुई मीडिया बिक जाएगा तब क्या होगा। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या सच में हमारे देश का मीडिया बिक सकता है। किसी एक पक्ष के फायदे के लिए किसी अन्य पक्ष को बर्बाद कर सकता है। हमारे लिए दुख की बात है। किन्तु इसका जबाव जानने के लिए कुछ पीछे चलतें हुए 1978 में हमारे देश के उपप्रधान मंत्री रह चुके जग जीवन राम के बेटे सुरेश की कुछ आपत्ति जनक तस्वीरें 'सूर्या' नामक मैगज़ीन में छापी। जिसकी संपादक इंद्रा गांधी की बहू मेनका गांधी जी। इस कार्य से जग जीवन राम की छवि समाज में खराब हो गई और देश को पहला दलित नेता नहीं मिल सका।
यह कार्य जनता की सोच कर या किसी स्त्री के बारे में विचार करके नहीं, बल्कि राजनीतिक सोच के तहत किया गया था। जिसका मुख्य लक्ष्य जग जीवन राम की छवि को ख़राब करके उन्हें प्रधानमंत्री बनने ना देना था। यह कार्य हमें बताता है कि सत्ता में बैठे लोग हमेशा ही अपने लाभ के लिए मीडिया का प्रयोग करते आए हैं। यदि आप को ऐसा लगता है। कि आज हमारा मीडिया बिक गया है और लाचार हो गया है। तो ऐसा नहीं है वह सालों से यही कार्य करता आया है। आज आंकड़ा बहुत बढ़ गया है। अपने लाभ के लिए कुछ भी करने का। इस में मीडिया भी सहयोग दें रहा है।
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ की दिवारों को कमजोर बनाने के लिए दीमक का कार्य सालों से चल रहा है। आज वह दीमक अपना कार्य कर चुकी हैं और मीडिया खोखला हो गया है। इस लिए हम हकीकत को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस लिए अब शौक ना बनाएं कि हो क्या रहा है। कोशिश करें मीडिया में बदलाव लाने की। सच और झूठ को उनकी नजरों से ना समझ कर अपनी समझ से समझें। साथ ही सच की राह पर चलने वाले मीडिया की मदद करें, ताकि सच की आवाज़ दब ना जाएं और हम बर्बाद हो कर बस आंसू ना बहाएं।
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