मगरू महादेव का यह प्राचीन मंदिर सतलुज वर्गीय पहाड़ी शैली का उत्कृष्ट नमूना उतरी भारत के मंदिरों में माना जाता है। मंदिर तीन मंजिलों वाला है। बाहर से देखने पर मंदिर साधारण सा लगता है। मंदिर के भीतर गर्भगृह की छत पूर्णतय नक्काशी से सजी है। इसकी छत पर अत्यंत सूक्ष्मता से जो चित्रकारी की गई है ।वह अद्भूत और अद्वितीय है। इनमें कई युगों का जिक्र किया गया है । महाभारत के वीरों को दर्शाया गया है। एक स्थान पर राजा जनक हल चलाते हुए दिखाये गये है ।एक जगह भीम को युद्ध करते हुए अवलोकित किया गया है । ब्रह्मा जी एक स्थान में सृष्टी को रच रहे है । श्रीकृष्ण लीला के चित्र भी मन को लुभा लेते है ।
यह उत्कृष्ट चित्रकारी आश्चर्यपूर्ण है। इसी कारण आज इस मंदिर को पूरा तात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है ।
जनश्रुतियों के अनुसार कहा जाता है कि यह मंदिर 13 वीं सदी के मध्य का है मंदिर के भीतर शिव और पार्वती की पाषाण प्रतिमा उलेखनीय है गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है । इस पथ पर भगवान के प्रहरी की मूर्ति भी दर्शनीय है । इसे मशाणु के नाम से भी पुकारते है । यह लकड़ी की प्रतिमा है और इनके साथ यहाँ पर नाग खोलू भी साथ विराजते है ।
मंदिर निर्माण और लोक कथाओं को लेकर काफी भिन्नता है । कुछ लोग मानते है कि यह मंदिर एक ही पेड से निर्मित किया गया है। प्राचीनकाल में गाँव के एक व्यक्ति ने देवदार का एक पेड काट दिया था । वास्तव में उसने वह पेड घर की लकड़ी के लिए काट गिराया था । लेकिन बहुत यत्न करने पर भी यह कटा हुआ वृक्ष अपनी जगह से नहीं हिला इस पर उस व्यक्ति ने इश्वर को स्मरण किया तो उसे भविष्यवाणी हुई कि इसकी लकड़ी मंदिर निर्माण में लगाई जाए गाँव के लोगों ने जब ऐसा सुना तो उसी निर्देश के अनुसार उस पेड से यह मंदिर बनाया गया ।
मगरू महादेव मगरूगढ़ व मानगढ़ दो गढ़ क्षेत्र के अराध्य देव है ।
इनके सम्मान में यहाँ पांच दिवसीय छतरी मेले का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है।
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