बिलक बिलक कर रो रही है माँ,बच्चे भूख से मर गए!
पिता की लाठी टूट गई घर को जाना छूट गया।।
सड़कों पर लहू फैल गया,किसी की ग़लती कोई और झेल रहा!
हिमाचल दहाड़े मारकर रो रहा,भारत आज भूखा ही सो रहा।।
पाव के छाले दिख रहे,क्या किसी का ह्रदय भी दुःख रहा!
राजाओं की बात हो रही,गरीबों की रात कहीं खो रही।।
दर्द की सीमा टूट गई,किसी का साथ किसी से छूट गया!
मानव मानव का दुश्मन बन गया,पैसे के लिए हर कोई बिक गया।।
ऐसा खेल खेला है,पैसे ने ज़ोर ज़ोर से दखेंला है!
अमीरों की चांदी चल गई,गरीबों को बर्बाद कर गई।।
दर्द से दहल उठा हूँ,किसके पास जाऊं,किसीको अर्जी लगाऊँ!
घर अभी दूर है,अब न खाने को पैसा है,न जाने को रुपया है।।
ऐसा कहर मचाया है,दुनिया को नाच नचाया है!
अब तो डमरू वाला आएंगा,महाकाल बनकर दरबार सझाएंगा।।
मंहगाई ने कोहराम मचाया है,हर तरफ दुःख दर्द का सैलाब बहाया है!
कौन हमारी सुनेगा,कौन हमकों बचाएंगा।।
अमृत की बूंदे दिखा दो,फिर एक बार हिमालय उठा लो,
हमकों संजीवनी चका दो,हमको माझी बनकर पार लगा दो।।
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