Sunday, May 31, 2020

दहेज़

दहेज़ के नाते जब उसे दी जाती थी यातनाएं

वो अपने परिवार के लिए ख़ामोशी से सब सहती

अक्सर उसके पैरों को जलाया जाता गर्म चिमटों से

भूखी प्यासी वो तड़पती रहती कई कई दिन रात

मगर कभी नहीं मांग करती अपने मायके से कुछ

वो लड़की है वो जानती है मायके की परिस्थिति

पता है बैंकों से लोन लेकर की गई है उसकी शादी

दर्द,प्रताड़ना को रोज़ सहती लेकिन ख़ामोश रहती

एक दिन ससुराल वालों ने मिट्टी का तेल डाल 

जला दिया उस बहू को जिसके हृदय में लक्ष्मी बसती थी

तड़प और प्यास से वो चिल्लाती रही पापा भैया मां

मगर दहेज के लोभी उसे जलता देख हंसते रहे

 बेटी को मुखाग्नि देते वक़्त पिता ने बस यहीं कहा

"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"

न्याय के देवी ने आंखों में फ़िर बांध लिया काली पट्टी

स्वतंत्र हो कर घूमने लगे उसके ससुराल वाले 

मगर पिता ने वादा पूरा किया उन्हें सजा दिलवाया

मुकदमें के लिए मां ने बेच दी मंगलसूत्र भाई ने छोड़ दी पढ़ाई

आख़िर में पिता की ये बात सच निकली

"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"

 

 

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