Wednesday, May 20, 2020

"भोर"

कब आएगी वो पहले वाली भोर,

जब था तरु पर चिड़ियों का शोर।

 

सब थे बेफिक्र प्रकृति का था न कोई जोर,

अब तो प्रकृति के रौद्र रूप से हाहाकार चहुंओर।

 

अब नित्य कोशिशें प्रकृति को मनाने की पुरजोर,

मनुष्य तरस रहा देखने को पहले वाली भोर।

 

"रजत" भी चाहे हो जाये पहले वाली भोर,

हटे घटा विपदा की खुशहाली छाए चहुंओर।

 

 

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