जब जब सृष्टि में किसी भी प्रकार का घनघोर संकट उत्पन्न हुआ तब तब त्रिलोकी की महाशक्तियों ने उस संकट के निवारणार्थ लीला रचकर उस संकट को समाप्त किया । ऐसा ही एक अवतार भगवान विष्णु का जिन्होंने सतयुग के मध्यकालीन समय अवधि में जिन्होंने नृसिंहावतार के रूप में प्रकट होकर समस्त त्रिलोकी को संकट मुक्त किया । यह अवतार ब्रह्मा की सृष्टि के बिल्कुल विपरीत था अर्थात उनका सिर सिंह का और धड़ मानव का था इसी कारण नृसिंह (नरसिंह) नाम की व्युत्पत्ति हुई। पुराणों के अनुसार यह भगवान विष्णु के पंचम अवतार के रूप में भी पूजे जाते हैं । जिनके पूजन में शीतल वस्तुओं का भोग अर्पित करने से मनुष्यों के सकल मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं ।
आदि काल में दो दैत्य हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप मैं सृष्टि में हाहाकार मचा लिया। उन्होंने समस्त त्रिलोकी को अपने अधीन कर दिया और ब्रह्मा जी से ऐसा वरदान प्राप्त प्राप्त किया जिस वरदान के बल पर यह दोनों दैत्य समस्त सृष्टि पर शक्ति का दुरुपयोग करके प्राणियों को अनेक प्रकार के कष्ट पहुंचाने लगे। हिरण्याक्ष ने तो समस्त भूमंडल को जलमय कर दिया था जिसके रक्षण के लिए भगवान विष्णु को स्वयं धरती को मुक्त करने के लिए वराहावतार धारण करना पड़ा । वराह ने ही हिरण्याक्ष का वध किया और पुनः सृष्टि में शांति स्थापित की।
अपने भाई के वध का प्रतिशोध लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु का बड़ा भारी विरोध किया और उनसे शत्रुता मोल ली। असुर का इतना आतंक बढ़ गया इसमें ऋषि मुनि और भक्तजनों को बहुत प्रकार के कष्ट देने लगे ।
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥
त्रिभुवन तृणमात्र त्राण तृष्णंतु नेत्र त्रयमति लघिताचिर्विर्ष्ट पाविष्टपादम् ।।
नवतर रवि ताम्रं धारयन् रूक्षवीक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ।।
भक्त जनों को कष्टों से मुक्ति दिलाने और सृष्टि पर धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जिसे नृसिंह चतुर्दशी भी कहते हैं । इसी दिन भक्त प्रल्हाद के आवाहन पर भगवान विष्णु ने खम्भे (स्तम्भ) को निमित बनाकर नृसिंह रूप धारण किया था । इस वर्ष 6 मई बुधवार के दिन भगवान नरसिंह प्राकटय जन्मोत्सव मनाया जाएगा ।
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