आज की दिग्भ्रमित होती जा रही युवा पीढी़ पर चिंता व्यक्त करते हुये कहता हूँ कि जिस तरह से आज की युवा पीढ़ी चाहे युवा हो या युवती जिस तरह पाश्चात्य संस्कृति में यकीन करते हुए उनका अनुसरण कर रही है,जो चिंता का विषय है। इसके लिए मैं माता पिता को पूर्णतया जिम्मेदार मानता हूँ,क्योंकि जिस तरह से माता पिता के संस्कार होंगे संतान का उसी में ढलना तय है। दुनिया से मिलने वाले संस्कारों को मैं सिरे से खारिज करता हूँ साथ ही साथ मेरा यह भी मानना है कि दुनिया से कभी बच्चों को संस्कार नहीं मिलते है बल्कि दुनिया तो बच्चों को माता पिता से मिलने वाले संस्कारों के महज मतलब निकालती है। मेरा कहने का अभिप्राय है कि जिस तरह से माता पिता के शुरूआती संस्कार होंगे बच्चे उनका ही अनुसरण करेंगे और समय पर माता पिता से बच्चों को सही संस्कार नही मिलने पर मैं माता पिता को दोषी मानता ही हूँ साथ ही साथ मोबाइल फोन एवं पोर्टलों पर प्रसारित होने वाले नकारात्मक कार्यक्रमों को भी प्रभावशाली मानता हूँ,जिसके कारण ही आज की युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा अपने सही रास्ते से भटक रही है। आज के दौर में देखा जाय तो बच्चों पर पड़ने वाले कुप्रभाव के लिए माता पिता तो जिम्मेदार होते ही हैं बल्कि उनकी संगत का प्रभाव भी ज्यादा पड़ता है। माता पिता या अभिभावक को चाहिए कि वो गलत संगत में रहने,करने और पढ़ने वाले बच्चों पर अंकुश लगायें। जिससे इस दुनिया के रीति रिवाज पर अफसोस जताते हुये कहता हूँ कि यही वह दुनिया है जहाँ अंध विश्वास के चलते सीता जैसी नारी को अपने चरित्र प्रमाण के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरना पडा़।इस लिए आज की युवा पीढ़ी को संस्कारवान पेडों के फल खाने चाहिए,भले ही वह शुरू में कड़वे लगें हों पर अंत में परिणाम व स्वाद मीठे होते हैं।
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