Saturday, April 11, 2020

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा सरकार याद रखें ‘भूख‘ का आइसोलेशन नहीं हो सकता है

अता खान रज़िया बानो लखनऊ।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि कोरोना का राजनीतिकरण दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे मूल मुद्दों से ध्यान हटता है और सरकार से पूछे जाने वाले सही क्वाॅरंटाइन, स्क्रीनिंग, संक्रमण की जांच, इलाज तथा दूध-दवाई, सब्जी, खाद्यान्न की आपूर्ति जैसे प्रश्न पीछे छूट जाते हैं। सरकार याद रखें ‘भूख‘ का आइसोलेशन नहीं हो सकता है।
        मुख्यमंत्री जी की अध्यक्षता में टीम-11 की बैठकों में अभी तक किसानों और दुग्ध उत्पादकों के बारे में कोई निश्चित और प्रभावी निर्णय नहीं लिए गए हैं जिससे कृषि क्षेत्र में अव्यवस्था फैली हुई है। छोटे किसान पशुपालन का भी धंधा करते हैं। लाॅकडाउन के चलते दुग्ध संग्रह केन्द्र बंद हो चुके है। प्शु आहार मंहगा हो गया है। पशुओं के रोगों के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। दूध की कमी से बच्चों की सबसे ज्यादा दिक्कते महानगरों और सील किये गये क्षेत्रों में है।
         दुग्ध उत्पादन में कमी से लखनऊ के सभी प्रमुख मिष्ठान भण्डारों में ताले लग गए हैं। चाय की दूकानों का धंधा चैपट है। जो हाॅटस्पाट हैं वहां दुग्ध आपूर्ति की व्यवस्थाएं अभी तक पटरी पर नहीं आई हैं। पशु चारा बाजार से गायब है या मंहगे दामों पर मिल रहा है। सरकार ने गोपालकों की दिक्कतों से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है। उन्हें प्रतिमाह जो धनराशि दी जानी थी वह भी नहीं दी जा रही है। महानगरों में दूध आपूर्ति पूरी तरह बाधित है। राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से प्रतिदिन टनों दूध की सप्लाई होती थी। उत्तर प्रदेश के महानगरों, नगरों सहित राज्य की राजधानी लखनऊ में दुग्ध उत्पादक को घुसने नहीं दिया जा रहा है, दूध कहाँ ले जायें? किसानों को कोई रास्ता सूझता नहीं हैं। अब तो टीम इलेवन पर ही दारोमदार है कि गेहूं और दूध का क्या करें?
         किसानों के प्रति सरकारी रवैया उपेक्षापूर्ण है। गेहूं की फसल तैयार है लेकिन सरकारी क्रय केन्द्रों का कहीं अतापता नहीं है। क्रय केंद्रों को भुगतान की धनराशि नहीं दी गई है। किसानों को धोखा ही मिला है। न तो उन्हें लागत का ड्योढ़ा दाम मिल रहा है, न उनकी आय दुगनी करने के वादे का कहीं जिक्र हो रहा है। किसान को अतिरक्त मुआवजा, गन्ना किसानों को मयब्याज बकाया भुगतान और असमयवृष्टि तथा ओला गिरने से हुई फसल की क्षतिपूर्ति किए जाने की तत्काल आवश्यकता है।
          किसानों को बिना ब्याज के सस्ते कर्ज की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। उर्वरक के दाम सस्ते किए जाए। अन्यथा कर्ज और फसल की लागत भी न मिलने से हताश किसान अवसाद में आत्महत्या करने लगेंगे। वैसे भी कृषि क्षेत्र संकट से घिरा है। कृषि क्षेत्र सिमटता जा रहा है। किसान खुद मजदूर बनता जा रहा है। लाॅकडाउन के बाद की स्थिति बहुत उजली नहीं दिख रही है। इसलिए अभी से राज्य सरकार को सावधानी के कदम उठाने होंगे।


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