मेरे टूटे हुए मकानों में जब भी उसका आना हुआ
खंडहर हो चुकी दीवार टपकती छतों से सामना हुआ
फिर कहां रही उसके दिल में मेरे लिए मोहब्बत
फिर तो बदलते वक्त में मेहमान बनकर आना हुआ
मेरे टूटे हुए मकानों में जब भी उसका आना हुआ
ऐसे भी बात नहीं वह मुझसे मोहब्बत नहीं करती थी
पर बिताया जाएगा जीवन कैसेहाल देखकर डरती थी
कुछ तो मेरी थी मजबूरी कुछ उनका भी किनारा हुआ
मेरे टूटे हुए मकानों में जब भी उसका आना हुआ
खंडहर हो चुके दीवार टपकती छतों से सामना हुआ
बहुत सबूत है आज भी मेरे पास उसकी मोहब्बत के
राठौर नाम लिखा नहीं धड़कनों में जलजला सा हुआ
मुस्कानआ गई शब्दों पर जैसे बहारो का आगमन हुआ
मेरी बचपन की मोहब्बत को आज एक जमाना हुआ
खंडर हो चुकी दीवार टपकती छतों से सामना हुआ
मेरे टूटे हुए मकानों में जब भी उसका ना हुआ
महेश राठौर सोनू
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