Tuesday, April 7, 2020

पल पल दिलजले 

ये दीप नहीं दिल जले हैं 

इस बंदी में तिल तिल जले हैं।

दीप तो बूझ गये कई घरो के 

भूख की वेवसी में पैदल चले हैं।

 

ये मजबूरीयाँ देने वाले 

देखो उस पार से हँस रहे हैं

खोज रहा वह व्यापार यहाँ 

इसलिए यह घटिया चाल चले हैं।

 

हमें अपनी सादगी त्यागनी होगी

दुश्मनों की चाल जानती होंगी

उनकी दकियानूसी बात टालनी होंगी

हर वो साजो समान त्यागनी होगी।

 

नेक दरिया दिली किस काम की 

जब अपनो का लाश बिछ जाये

दोस्त बनकर आए वो

और हमें जख्म ही जख्म दे जाये।

 

ऐ सरकार जग जाओ 

वाहिष्कार करो ऐसे मुल्को का

कोई विदेशी न प्रवेश करे

सुरक्षित सरहद करो वतन का।

 

ऐसे कैसे कोई घुस जाता है

पूरे भारत भ्रमण कर जाता है

हो सख्त कानून यहाँ पर

फिर कैसे कोई परिन्दा पर हिलाता है।

 

मंसूबो से वाकिफ होकर

कैसे भूल कर जाते हो

है कमी मुझमें ही अगर

क्यो नही कमी दूर कर पाते हो? 

 

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