स्वच्छता में योगदान,करोना का समाधान ही नही सभी रोगो का समाधान ऐसा हमारे पूर्व के ग्रंथो, वेदों,शास्त्रों, ऋषि मनीषियो और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने बहुत पहले हमें बताकर गये।पर हमलोगों ने उसे झूठे मनुवाद से जोड़कर छुआ-छुत का नाम दे दिया जिस सामाजिक दूरी की आज बात हो रही है। वह सामाजिक दूरी हमारे ऋषि मनीषियो ने हमारे संस्कार में डाला पर शायद हम इसका पालन न कर सके, जिस स्वच्छता की बात आज हो रही वह सदियो पहले की जा चुकी है।पर हमलोग ना तो स्वच्छ रह पाये और न ही सामाजिक बंधनो का पालन कर पाये हमें तो बदन दिखाने की पश्चिम सभ्यता अपनाने के साथ विकास का भूत सवार था।शाकाहारी की जगह मांसाहारी न जाने अपने स्वार्थ में हमने अपने भविष्य को अंधेरे कुएँ में धकेल दिया जिससे आज मानव पर एक छोटा कीटाणु हावी है।जबकि एक मंत्र से कई सदियो तक कुल का नाश किया गया है यह पूर्व की कहानियो मे उल्लेखित है। पश्चात संस्कृति की तरफ आकर्षित होना शायद यह मानवजाति की अहम भूल है जिसका जिम्मेदार विदेशी परिवेश चमक धमक भोग विलास और पाप है।अगर अब भी मानव नही सुधरा तो मानव जाति का अंत निश्चित है।
अतः जो कई कई सदियों तक तप तपस्या करने वाले ऋषि मनीषियो ने हमें विरासत स्वरूप संस्कृति दी है उसका पालन करें अनावश्यक मनगढंत भाषा अपनाकर संस्कृति का अपमान न करे । तभी स्वच्छता के साथ समृद्धि और रोगमुक्त समाज निर्मित हो सकेगा।
आशुतोष
पटना बिहार
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