न क्रुंदन करती ना ही चित्कार करती
कभी न किसी को वो तिरस्कार करती।
रूप बदलकर आती, सभी अवस्थाओ में वो तो सिर्फ हृदय से, हमें प्यार करती।
शक्ति की प्रगाढ़ता, जीवन की मौलिकता
आधार बनकर जीवन में वास करती।
सच्चाई की मिशाल, विश्वास में विशाल
छल कपट भी, मुस्कुरा के टाला करती।
वो काया कितनी महान, जिसमें सारे गुण
पर मानवता, इनका दिल तोड़ा करती।
बड़ा शर्मसार होना पड़ता देश को
जब दरिंदगी भी यहाँ निवास करती।
न्याय के लिए सच और झूठ तौला जाता
वेतुके तर्क से इन्हें और टाला करती।
शक्ति की धरोहर की यह पीड़ा
जब हद से पार हुआ
फांसी पर लटका दो
संसद के दोनों सदनों से पास हुआ।
धरती हो या अम्बर जुल्म नही चलेगा
नारी शक्ति के आगे फांसी नहीं टलेगा।
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