डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि श्रवण हानि से संबंधित प्रारभिंक पहचान और उपचार के लिए जागरूकता जगाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि श्रवण हानि दिव्यांगता के साथ वर्षों तक जीवनयापन करने का चौथा प्रमुख कारण है। भारत सरकार ने श्रवण क्षमता की प्रारंभिक पहचान, निदान और उपचार पर ध्यान केंद्रित करते हुए बधिरता की रोकथाम और नियंत्रण पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीपीसीडी) का शुभारंभ किया है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम 558 जिलों में लागू किया जा रहा है और वर्ष 2019-20 के 9 महीनों में श्रवण हानि सहित कुल 3,27,172 मामलों की जांच की गई। कुल 18,745 ईएनटी सर्जरी की गई। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि कुल 13,411 श्रवण यंत्र लगाए गए हैं और वर्ष 2019-20 के दौरान अब तक 45,953 व्यक्तियों को पुनर्वास के लिए संदर्भित किया गया है।
डॉ. हर्षवर्धन ने सलाह दी कि इस कार्यक्रम को मिशन मोड में लागू करने के लिए अधिक केंद्रित रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य और वांछित परिणामों को प्राप्त करने हेतु वर्तमान कार्यक्रम को और अधिक मजबूत बनाने के लिए बौद्धिक सत्रों, जागरूकता शिविरों, निगरानी तंत्रों आदि को प्रारंभ करने की आवश्यकता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने माँ और बच्चे की देखभाल से संबंधित अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों/ योजनाओं के साथ एनपीबीसीडी को जोड़ने की संभावनाओं का पता लगाने का भी सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि उपयुक्त और प्रभावी सूचना, शिक्षा और संचार (आईइसी) रणनीतियों के माध्यम से जन जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिससे क्षमता निर्माण और विकास के साथ-साथ बधिरता की प्रारंभिक पहचान और रोकथाम से संबंधित मामलों के प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जा सके। इसके अलावा, मेडिकल कॉलेज स्तर के विशेषज्ञों (ईएनटी और ऑडियोलॉजी) के द्वारा जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
बैठक के दौरान, संयुक्त सचिव डॉ मनोहर अगनानी, एमएएमसी के पूर्व डीन डॉ. अरुण अग्रवाल, आरएमएल ईएनटी विभागाध्यक्ष डॉ. कंवर सेन, एलएचएमसी के विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार, एम्स (दिल्ली) के प्रो. राकेश कुमार, सफदरजंग अस्पताल के ईएनटी विभागाध्यक्ष डॉ शांतनु मंडल, आईएसएचए, मैसूर के ऑडियोलॉजिस्ट डॉ. शिव प्रसाद रेड्डी के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारी भी उपस्थित थे।
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