अक्सर सुनने में मिलता है बलात्कार एक घिरौना अपराध है। जिसकी सज़ा कड़ी से कड़ी हो। ताकि फिर ऐसा कोई ना करें। किन्तु जब यह पता चलता है कि भारत में हर छे घंटे में एक महिला होती है बलात्कार की शिकार होती है। जब यह जानकारी हम तक पहुंचती है तब यह समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर ऐसा होने के कारण क्या है?
भारत में बलात्कार को लेकर कानून बनाएं गए है किंतु उनका पालन करने में देरी एक बहुत बड़ा कारण रहा है। बढ़ते बलात्कारों का। हमारे देश में 2011 से लेकर हर साल 20,000 हजार से अधिक के केस दर्द हुए हैं। यह बढ़ता आंकड़ा यह बताता है कि भारत में कानून का डर शायद अब लोगों में धीरे-धीरे कम होता जा रहा है या फिर रहा ही नहीं है। इसकी एक मुख्य वजह अदालती कार्यवाही में होती देरी।
भारत में बलात्कार के लिए कानून बनाएं गए है किंतु उनका पालन अक्सर नहीं हो पाता है। कभी बलात्कारियों द्वारा सज़ा मिलने पर पीड़ित लड़की के साथ विवाह कर अपनी सज़ा में माफ़ी या कमी कर ली जाती है। कभी सबूतों और गवाहों के साथ छेड़छाड़ कर के बचा जाता है। कई बार अमीर और ताकतवर लोगों द्वारा पैसे और ताकत का प्रयोग कर बलात्कार जैसे केस में इंसाफ़ होने से रोका जाता है।
हमारे देश के कानून में बलात्कार को एक बहुत ही जघन्य अपराध माना गया है। जिसके लिए फांसी जैसी सजा का भी प्रावधान किया गया है। किन्तु हमारे देश में अधिकतर बार फांसी की सज़ा दिए जाने के बाद भी बलात्कारियों को फांसी नहीं दी जाती है। जिसके चलते भारत में बलात्कार करने की मानसिकता लोगों में बढ़ती जा रही है और बलात्कार के केस भी।
भारत में बलात्कार के मामले में आख़री फांसी 2004 में दी गई थी। उस के बाद बलात्कार का आंकड़ा बढ़ा किन्तु किसी को भी फांसी नहीं हुई। सज़ा सुनाई गई लेकिन हर बार कानून के प्रयोग द्वारा बलात्कारी बचा लिए जाते है। जिसका हमारे सामने सब से बड़ा उदाहरण निर्भया कांड है।
जहां 2013 में अदालत द्वारा फांसी की सज़ा सुनाई गई किन्तु वह आज भी जिंदा है, कुछ महीनों से बार-बार टल रही चारों दोषियों की सज़ा देश को शर्मसार भी करतीं है।
एक ओर वह पीड़ित हैं जिसका जीवन इन लोगों द्वारा छिन लिया गया और दूसरी ओर वह माता-पिता है जिनको अभी तक हम इंसाफ़ नहीं दिला सके हैं। दोषियों को समय पर सज़ा ना दे सकना बढ़ते अपराधों का एक मुख्य कारण है। यदि हम समय पर इंसाफ नहीं करेंगे तो कैसे लोगों में कानून का डर और उम्मीद बनेगी।
किसी को फांसी की सज़ा देना, किसी अपराध को रोकने का सही तरीका नहीं हो सकता है। किन्तु किसी को बलात्कार जैसे अपराध करने की सज़ा नहीं देना ऐसे अपराधों में बढ़ोतरी होने की बड़ी वजह बन गई है। लोगों में कानून और समाज का डर शून्य होता, अपराधों की बढ़ती संख्या का मुख्य कारण है।
हमारे देश में बलात्कार के बढ़ते केस इस ओर इशारा करते है कि हम बलात्कार का विरोध करतें हैं। किन्तु अपने निजी जीवन में कहीं ना कहीं स्त्रियों के साथ होने वाले अपराधों के लिए वही सही है, ऐसा ही होना चाहिए जैसी वजह को हम सभी के दिमाग में डाल दिया गया है। जिसका असर तब नज़र आता है जब हमारे ही किसी अपने द्वारा स्त्रियों के साथ होने वाले अपराधों पर हम स्त्रियों को ही जिम्मेदार ठहरा कर। उनके वस्त्र, उनकी विचारधारा और उनके जीवन को ही अपराध का कारण बता कर समाजिक तौर पर उन्हें ही अपराधी बना देता है।
इन सबके चलते स्त्रियों के साथ होने वाले अपराध बढते जा रहे है। जिसके चलते स्त्रियों का जीवन अपने देश, परिवार, घर सभी जगह मुश्किल होता जा रहा है। अब हमें समझना होगा कि किसी भी अपराध का विरोध करना ही जरूरी नहीं है। ऐसे गलत कार्य करने वालों को सज़ा देना भी जरूरी है। ना कि उन को सज़ा दी जाए जो पीड़ित है।
हमें समझना होगा कि फांसी की सज़ा सुनना ही सही नहीं है। बल्कि ऐसे लोगों को जल्द से जल्द सज़ा देना भी जरूरी है। सज़ा की प्रक्रिया में होती देरी पीड़ितों के साथ ना इंसाफी होने के साथ ही, बढ़ते अपराधों की एक बड़ी वजह भी बन रही है।
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