Thursday, March 19, 2020

अतीत के दाग यूँ नहीं मिटते नींद में भी देखो पसीने छूटते

बिहार के युवा नेता इन दिनो बहुत  जद्दोजहद कर रहे हैं जाति समीकरण और धन बल के साथ पूरा समर्पित होकर जनता के बीच जा रहे हैं ,लेकिन पूर्व में किये गये पार्टी द्वारा गैरजिम्मेदाराना कार्य की छवि जो उनको विरासत में मिली है उसे धोना उनके लिए इतना आसान भी नहीं है। यदि ऐसा ही होता तो लोकसभा चुनाव में मजबूत स्थति बनी होती।वैसे राजनीति में कुछ भी संभव है।लेकिन इसके लिए अनुभव और स्तरीय राजनीतिज्ञ की जरूरत होगी जो इस समय राजद खेमे को वेचैन कर रहा है।ऐसी एक भी छवि नही है जो वर्तमान बिहार के मुखिया के तौर पर खुद को प्रोजेक्ट कर सके। नीतीश कुमार की छवि एक कुशल प्रशासक के तौर पर वेदाग रही है जो उनका मुख्य अस्त्र है।जिसका काट अभी विपक्ष के पास नहीं है यही कारण है कि वेरोजगारी और एनआरसी को हथियार बनाकर पेश किया जा रहा ताकि युवाओ को तोडा जा सके।

बिहार में बच्चा बच्चा के दिलो में राजनीति निवास करती है और वे अच्छी तरह समझ सकते हैं कि बिहार किसके हाथो में सुरक्षित रहेगा।जहाँ तक जाति समीकरण का सवाल है तो वो बीती बातें है क्योंकि शराब बंदी और दहेज बंदी ने महिलाओ का वोट बैंक सरकार के पक्ष में कर दिया है जिसे किसी भी हाल में तोडना मुश्किल होगा।नीतीश सरकार ने महिलाओ के लिए अदभूत कार्य भी किए हैं ।पुलिस सेवा में आरक्षण,निकाय चुनाव में आरक्षण, साइकिल योजना, पोशाक योजना,बाल विवाह पर रोक और नशामुक्ति अभियान से बिहार में महिलाओ की दशा में व्यापक परिवर्तन के साथ खुशी का माहौल बना है जिसके परिणाम स्वरूप जो पहले प्रताड़ित होती थी वो आज स्वावलंबन के साथ जीवन व्यतीत कर रही है।

वहीं कौन भूल सकता है वह 90 का दशक अपहरण उद्योग अपने चरम पर था।उद्योगपति पलायन कर रहे थे। डाक्टर इंजीनीयर यहाँ तक कि साधारण दूकान से भी रंगदारी उद्योग वेरोक टोक चल रहा था।सडक खस्ते हाल थे। बिजली के पोल थे तो तार नही।कई जगह तो पुल पुलिया भी नही थी।

  आज जिसे देखो वेरोजगारी पर भाषण दे सकता है लेकिन यह वेरोजगारी की शूरूआत कहाँ से हुई क्या बिहार नब्बे के दशक में वेरोजगार था या नब्बे के बाद हुआ 1990से 2005 के बीच सभी चीनी उद्योग बंद हुए जुट मीले बंद हुए वस्त्र उद्योग बंद हुए बुनकर का पलायन आरंभ हुआ मिथिला पेंटिग्स पर प्रभाव पडा छोटे मझोले उद्योग बरौनी उद्योग बंद हुए  औद्योगिक वित्त निगम का हाल खस्ता हुआ सब उन दिनों हुए जब बिहार की सत्ता आरजेडी के हाथो में थी और तो और 1990से लेकर 2005 तक सभी तरह की बहाली बंद कर दी गयी जिससे सरकारी संस्थानो और शिक्षण संस्थानो पर बुरा प्रभाव पडा जो आज तक ठीक नही हो सका।

वेरोजगार यात्रा करना अच्छी बात है लेकिन इतना तो बताते वेरोजगार युवक को रोजगार देने का विजन क्या होगा उसका अभी तक किसी मंच से व्याख्या नही की गयी कैसे रोजगार सृजन करेंगे आधी धरती बिहार की बाढ से प्रवाहित होती है तो आधी सूखे में उसके लिए क्या योजनायें है।जमीनी बात करने पर ही लोग जुडेंगे वरना खाएँगे पीएँगे पर सुनेंगे नहीं क्योंकि छवि आपकी धुलेगी नहीं।

एक पाक साफ सरकार को कोसना आसान है लेकिन पाक साफ बने रहना बहुत मुश्किल होता है। बिहार की इस बेहतरी के लिए सरकार की अबतक की कार्यप्रणाली सराहनीय रही है जो जमीनी हकीकत है जिस पर कोई समीकरण लागू नही होता सिर्फ विकास का समीकरण बनाइये जाति समीकरण का दौर चला गया ।

 

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