Sunday, March 29, 2020

आपदा न आये यदि लोग मानव बन कर रहें






यह समय युद्ध का नही महायुद्ध का है। कोरोना केवल एक महामारी नही, महाकाल के रूप में फैल रहा है। अमानवीय जीवन संस्कृति ने हमे इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसके लिए केवल और केवल हम दोषी हैं। जरा सोचिए, लाखो करोड़ो की लक्सरी गाड़ियां आपके किस काम की। महंगे सात और पांच सितारा होटल किस काम के। महंगे रेस्टुरेंट किस काम के। मॉल, बिग बाजार, v मार्ट, डिजाइनर सामान, परफ्यूम, साबुन, डिटेरजेंट, मिठाईयां, आइसक्रीम, यूनिसेक्स सैलून, कालीन, क्रॉकरी, अन्य लक्सरी सामान इस समय किस काम के रह गए। बड़े बड़े युद्ध पोत, विमान, टैंक, मिसाइलें, बंदूकें, बम, परमाणु बम किस काम के रह गए। दुनिया की सभी सत्ताएं चिल्ला चिल्ला कर हमसे आदमी के रूप में बदल जाने को कह रही हैं। आज केवल और केवल मानवीय पक्ष सामने करने को कहा जा रहा है। सनातन पवित्रता ही सबसे बड़े हथियार के रूप में उभरी है। पवित्रता से बड़ा कोई वैज्ञानिक साधन फिलहाल दुनिया को इस महायुद्ध से बचाव में कारगर नही दिख रहा। इसीलिए विभव स्वास्थ्य संगठन भी अब केवल भारत उर भारतीयता के भरोसे है। वह साफ साफ कह रहा है , दुनिया को भारतीय जीवन की सनातन पवित्रता को अपनाना ही होगा।

अभी तक दुनिया के लोग कर क्या रहे थे। प्रकृति से लेकर अंतरिक्ष तक को अपने अपने कब्जे में लेने की होड़ मची थी। जब हम सनातनी बार बार पृथिवी शांति, वनस्पतयः शांति, अन्तरिक्षः शांति का उद्घोष कर रहे थे तो हर सनातन मनुष्य को दुनिया पिछड़ा और अवैज्ञानिक करार देती थी और पिछले 70 वर्षों में भारत मे तैयार की गई कथित प्रगतिशीलता की जमात हमारी हंसी उड़ाने से बाज नही आती थी। हमारी उपासना, पूजा, घड़ी घंट, हवन पूजन, होम, आरती, व्रत , तीज , त्यौहार, होली, दिवाली , दशहरा , नवरात्रि आदि सभी पिछड़ेपन की श्रेणी में थे। घरों से चौके हटा कर किचन स्थापित करने की होड़ मच गई। धरती पर मकान की बजाय हवा में तैरते मचान लक्सरी सुविधाओं के साथ संभ्रांत और कुलीन मान लिए गए। गायों की जगह घरों में कुत्ते ले लिए। खेतों खलिहानों , बगीचों, जंगलों, तालाबो , पहाड़ो, नदियों, पशुओं, पक्षियों सभी को निगल कर हम खुद को सभ्य कहने लगे। 

कल्पना कीजिये कि आपके पास आज भी खेत खलिहान होते, घर मे गाय होती, पशु पक्षी होते, तालाब होते, नदियां अपने प्रवाह में होतीं, भरपूर अनाज होता, अपने खेत की सब्जियां, अपने बगीचों के फल होते, क्या तब भी आपको करोना क्राइसिस से कोई घबराहट होती? आज सब्जी , फल, अनाज आदि के लिए महानगरों में जो दरिद्रता दिख रही है वह क्यों है , अब तो इसकी समीक्षा कर लीजिए। जिस सेनिटाइजशन के लिए आपको चिंता हो रही है वह तो युगों से हमारी जीवन संस्कृति में था। घर के भीतर किसी को प्रवेश देने से पहले उसका हाथ पैर धुलवाते थे। भोजन केवल चौके में करते थे। खेती केवल अपने घर के पशुओं से प्राप्त खाद के बल पर करते थे। न डीजल जलता न पेट्रोल। न प्रदूषण होता न रासायनिक दवा की जरूरत पड़ती। शिक्षा भले कम रही हो लेकिन ज्ञान बहुत था। नैसर्गिक न्याय पर्याप्त था। नैतिकता थी। संवेदना थी। मर्यादा थी। संस्कार थे। बड़े छोटो का लिहाज था। लज्जा थी। भय था। संकोच था। प्रेम था। 

लेकिन हमें तो सब कुछ वह करना था जो पश्चिम सिखा रहा था। घर का भोजन नही भा रहा था। होटल और रेस्टुरेंट में खाना स्टेटस सिंबल बना लिया हमने। घर मे रहना अच्छा नही लगता, होटलों में रहने लगे। डिजाइनर कपड़े, डिजाइनर समान। लग्जरी गाड़ियां। अमर्यादित आचरण। पति पत्नी धर्म से इतर अन्यत्र कामुक संबंधों में डूबने की अभिलाषा। सादगी से दूरी। सूर्य की उपस्थिति में नींद और कृत्रिम प्रकाश में जागरण। कथित आधुनिकता ने आज कहां ला कर खड़ा कर दिया है आपको, इसका अंदाजा भी है?

रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकता को हमने व्यवसाय बना दिया। जन्म और मरण जैसे प्राकृतिक प्रक्रिया को भी उद्योग बना दिया। आज डॉक्टरों के लिए बहुत कुछ लिखा और कहा जा रहा है लेकिन आधुनिक चिकित्सा के अति वैज्ञानिक भगवानों से पूछिए की किसी बच्चे की पैदाइश और आदमी की मृत्यु को दुनिया का सबसे बड़ा व्यवसाय किसने बनाया है भाई? बीमारी उद्योग बन गयी और तुम खुद को भगवान बना लिए। अब इतनी ही शक्ति तुम्हारे मेडिकल साइंस में थी तो इस एक सूक्ष्म विषाणु से परेशान क्यो हो? तुम्ही ने भारतीय आयुर्वेद, प्राकृतिक औषधियों, मानवीय जीवन संस्कृति, सामाजिक सरोकारों को सर्वाधिक नुकसान पहुचाया है। गौर से अपनी कारस्तानियों की समीक्षा करो। आत्म मंथन करो आधुनिक विज्ञानियों और चिकित्साशास्त्रियों फिर तय करो कि मनुष्यता के लिए तुमने क्या किया ? किसी सामान्य मनुष्य ने दवाओं को विश्व का सबसे बड़ा कारोबार नही बनाया, मनुष्य के शरीर के एक एक अंग का व्यवसाय किसी सामान्य व्यक्ति ने नही किया, किसी सामान्य व्यक्ति ने कभी किसी को जीवन का भय दिखा कर ठगा नही, किसी के खेत, आभूषण आदि कभी किसी सामान्य व्यक्ति ने नही बिक़वाये। अभी दो वर्ष ही हुए, डेंगू और स्वाइन फ्लू का इलाज किस तरह किस कीमत पर किया गया, यह अब सभी को पता है। कोरोना कोई प्राकृतिक विषाणु नही है। चीन हो या अमेरिका , इस पचड़े में नही पड़ना लेकिन यह सत्य है कि एक जैविक हथियार के रूप में कोरोना का निर्माण किया गया। आज यह भस्मासुर बन गया और अब इससे बचाव के लिए सारी दुनिया पागल होकर रास्ता तलाश रही है। अभी तक एक ही रास्ता दिख सका है और वह है कि प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति का अनुसरण कीजिये। दूसरा कोई उपाय है ही नही।

विनोद कुमार मिश्र 'संपादक ' (कादम्बरी टाइम्स )व काउंसलर लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान l


 

 



 



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