जैव-ईंधन उत्पादन सहित अधिकतर जैव-प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाएंकम लागत और शर्करा एवं नाइट्रोजन स्रोत से निर्वाध आपूर्ति की उपलब्धता पर निर्भर हैं। शर्कराआमतौर पर पौधों से आती है। पौधे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को शर्करा, प्रोटीन और लिपिड जैसे जैविक घटकों में परिवर्तित करने के लिए प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
हालांकिकुछ बैक्टीरिया, जैसे साइनोबैक्टीरिया (जिसे नीले-हरे शैवाल के रूप में भी जाना जाता है), भी प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को ठीक करके शर्कराका उत्पादन कर सकते हैं। साइनोबैक्टीरिया से शर्करा की उपज संभावित रूप से भूमि आधारित फसलों की तुलना में बहुत अधिक हो सकती है। इसके अलावा, पौधे-आधारित शर्करा के विपरीतसाइनोबैक्टीरियल बायोमास प्रोटीन के रूप में एक नाइट्रोजन स्रोत प्रदान करता है।
साइनोबैक्टीरिया ताजा और समुद्री पानी दोनों में पाए जाते हैं। समुद्री साइनोबैक्टीरिया का उपयोग करना बेहतर हो सकता है क्योंकि ताजे पानी में तेजी से कमी हो रही है। हालांकि, समुद्री साइनोबैक्टीरिया आधारित शर्करा उत्पादन की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार के लिए उनकी विकास दर और शर्करा सामग्री में उल्लेखनीय सुधार करने की आवश्यकता है।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी की एक टीम ने इसे हासिल किया है। इस केंद्र के जैव-ईंधन समूह के लिए सिस्टम बायोलॉजी के ग्रुप लीडर और डीबीटी-आईसीजीईबी सेंटर फॉर एडवांस्ड बायोएनर्जी रिसर्च के अण्वेषक डॉ. शिरीष श्रीवास्तव और आईसीजीईबी के एक पीएचडी छात्र जय कुमार गुप्ताने इस टीम का नेतृत्व किया।
उन्होंने एक समुद्री साइनोबैक्टीरियम सिनेकोकोकस विशेष नाम पीसीसी 7002 को सफलतापूर्वक तैयार किया। पीसीसी 7002 में उच्च विकास दर और शर्करा (ग्लाइकोजेन) की मात्रा दिखी। इसे जब हवा में उगाया गया तो उसका विकास दोगुना हो गया और कोशिकाओं के ग्लाइकोजेन मात्रा में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
इस अध्ययन टीम का नेतृत्व करने वाले डॉ. श्रीवास्तव ने इंडिया साइंस वायर से बातचीत करते हुएकहा कि सिनेकोकोकस विशेष नाम पीसीसी 7002 समुद्री साइनोबैक्टीरियम का एक मॉडल है और वहां अन्य सिनेकोकोकस प्रजातियां अथवा संबंधित जीव थेजिस पर इस काम को सही तरीके सेआगे बढ़ाया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘हम इस कार्य से संबंधित कई अनुवर्ती अध्ययन कर रहे हैंजिसमें बड़े पैमाने पर इसकी खेती,मानव एवं पशु मूत्र वाली यूरिया पर कोशिका वृद्धि,साइनोबैक्टीरियल बायोमास से शर्करा एवं प्रोटीन के निष्कर्षण का अनुकूलनऔर प्रसंस्कृत बायोमास से बायोइथेनॉल जैसे जैवप्रौद्योगिकी उत्पाद की प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट यानी सटीक अवधारणा शामिल हैं।
जैवप्रौद्योगिकी विभाग ने इस शोध को प्रायोजित किया है। वैज्ञानिकों नेअपने काम पर एक रिपोर्ट‘बायोटेक्नोलॉजी फॉर बायोफ़्यूल्स’ पत्रिका में प्रकाशित की है। (विज्ञान समचार)
(प्रमुख शब्द : यूरिया, शर्करा, प्रोटीन, बायोमास, प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट, बायो-इथेनॉल, समुद्री जल, ताजा जल)
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