डॉ. सिंह ने शिष्टमंडल को पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार अपने संसाधनों के 10 प्रतिशत हिस्से को पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास पर लगा रही है। इससे पता लगता है कि केन्द्र सरकार इस क्षेत्र के विकास को बहुत महत्व देती है।
डॉ. सिंह ने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र में वायु संपर्कता और आंतरिक जलमार्गों के तेज विकास के लिए सरकार ने प्रमुख कदम उठाए हैं। माल के सस्ते और आसान यातायात के लिए ब्रह्मपुत्र नदी सहित 20 आंतरिक जलमार्ग मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर को रेल मार्ग के जरिए नई दिल्ली से जोड़ दिया गया है और वहां हवाई अड्डे का निर्माण जल्द पूरा हो जाएगा।
डॉ. सिंह ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की जानकारी भी शिष्टमंडल को दी और उसे बताया कि सड़कों और पुलों के निर्माण में जापान बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। इसी तरह इजराइल भी सिट्रस फूड पार्क की परियोजना पर काम कर रहा है। डॉ. सिंह ने जर्मन शिष्टमंडल से जानना चाहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास परियोजनाओं के मद्देनज़र जर्मनी किस प्रकार सहायता कर सकता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास सचिव डॉ. इंदरजीत सिंह ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भारत और जर्मनी के बीच एक द्विपक्षीय सहयोग मौजूद है और दिसंबर, 2019 में इस विषय पर एक पायलट परियोजना पूरी की गई है।
उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन पर पूर्वोत्तर क्षेत्र के संबंध में भारत सरकार और जर्मनी के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना तैयार की गई है, ताकि भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के साथ तकनीकी सहयोग को कार्यान्वित किया जा सके। इस परियोजना का नाम सीसीए – एनईआर चरण-2 है। यह परियोजना मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और सिक्किम के लिए है।
याद रहे कि जर्मनी से पिछला संसदीय शिष्टमंडल 2015 में भारत आया था।
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