इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री वन धन योजना (पीएमवीडीवाई) एक विशेष पहल है, जिसका उद्देश्य वन संपदा अर्थात वन धन का दोहन कर जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए आजीविका का सृजन करना है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य जनजातीय समुदाय के लोगों के पारम्परिक ज्ञान एवं कौशल का समुचित उपयोग करना और ब्रांडिंग, पैकेजिंग एवं विपणन (मार्केटिंग) से संबंधित कौशल को सुनिश्चित करना है, ताकि बाजार की अगुवाई वाले उद्यम मॉडल के जरिए उनकी आय को अधिक से अधिक बढ़ाया जा सके। इसके तहत वन धन विकास केन्द्रों (वीडीवीके) की स्थापना की जानी है। प्रधानमंत्री वन धन योजना का उद्देश्य जनजातीय उद्यम का सृजन करना है, जिसमें ऐसे जनजातीय संग्राहक/उद्यमी होंगे, जो सामूहिक तौर पर एनटीएफपी (गैर-इमारती लकड़ी वन उत्पाद) से लेकर अन्य समस्त संबंधित कार्यों तक को पूरा करेंगे। यह सतत कटाई, मूल्य-वर्धन और मूल्यवर्धित उत्पादों की पैकेजिंग, ब्रांडिंग एवं विपणन के जरिए संभव होगा। उन्होंने सदस्यों को यह जानकारी दी कि प्रधानमंत्री वन धन योजना में अगले 3 वर्षों के दौरान 45 लाख जनजातीय लोगों के रोजगार एवं उद्यमिता विकास के लिए जनजातीय उद्यमों का सृजन करने की परिकल्पना की गई है, जिसमें 27 राज्यों और 307 जिलों को कवर करने वाले एक लाख एसएचजी (स्वयं सहायता समूह)/5000 वन धन विकास केन्द्र शामिल होंगे।
भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने ट्राइफेड के जरिए अगस्त 2019 में उपर्युक्त पहल की शुरुआत की थी। ट्राइफेड ने अब तक 26 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में 1101 वन धन केन्द्रों की स्थापना से जुड़े प्रस्तावों को मंजूरी दी है। यह योजना राज्य के प्रमुख (नोडल) विभागों और राज्य/जिला कार्यान्वयनकारी एजेंसियों के जरिए कार्यान्वित की जा रही है। जाने-माने संस्थानों जैसे कि आईआईटी एवं आईआईएम और राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों को इस पहल में सहयोग देने के लिए जोड़ा गया है। इसके तहत प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करने और वन उत्पादों के प्रसंस्करण और मूल्यवर्धित उत्पादों की ब्रांडिंग, पैकेजिंग एवं विपणन सहित विभिन्न पहलुओं पर वन धन केन्द्रों के सदस्यों को प्रशिक्षण देने में इन सभी संस्थानों से मदद ली जाएगी। ये जाने-माने संस्थान प्रशिक्षण के उपरान्त भी सदस्यों को अपनी ओर से आवश्यक सहयोग देना जारी रखेंगे, ताकि वन धन उद्यम का विकास संभव हो सके। इसके अलावा फिक्की, सीआईआई, एसोचैम, पीएचडी चैम्बर एवं डीआईसीसीआई जैसे संगठनों को भी इस वन धन कार्यक्रम से जोड़ा जा रहा है, ताकि उनसे आवश्यक सहयोग प्राप्त किया जा सके और इसके साथ ही व्यापार एवं उद्योग जगत की साझेदारी भी सुनिश्चित की जा सके। ट्राइफेड ने एक बहुआयामी रणनीति के जरिए जनजातीय उत्पादों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आवश्यक सहयोग प्राप्त करने के लिए वाणिज्य, एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम), ग्रामीण विकास एवं रेल जैसे मंत्रालयों से भी संपर्क किया है।
राज्यों में वन धन केन्द्रों की स्थापना की प्रक्रिया में काफी तेजी आ गई है। स्वीकृत 1101 वन धन केन्द्रों में से 406 वन धन केन्द्रों ने जनजातीय लाभार्थियों की पहचान कर ली है, जबकि 174 वन धन केन्द्रों ने एसएचजी/वीडीवीके के प्रशिक्षण का काम पूरा कर लिया है। इसी तरह 41 वन धन केन्द्रों ने मूल्य-वर्धन और प्रोसेसिंग से जुड़ी प्रक्रिया शुरू कर दी है।
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