अपने उद्घाटन संबोधन में श्री मुंडा ने कहा कि भारतीय आदिम जाति सेवक संघ विशेष रूप से देश के जनजातीय, घुमंतू, अर्ध-घुमंतू और विमुक्त जाति समुदायों तथा समाज के कमजोर वर्गों के लिए काम करता है और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है। बीएजेएसएस इन वर्गों के सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। ऐसा एक समान नागरिक के रूप में देश के राष्ट्रीय जीवन में उनकी वैध हिस्सेदारी में उन्हें सक्षम बनाने की दृष्टि से किया जा रहा है। भारतीय आदिम जाति सेवक संघ एक व्यापक राष्ट्रीय स्तर का जनजातीय संग्रहालय का भी रखरखाव कर रहा है। ठक्कर बापा स्मारक सदन, निकट झंडेवालान, नई दिल्ली में स्थित इस संग्रहालय में जनजातीय वस्तुओं और जनजातीय संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है। इस संग्रहालय को देखने के लिए नियमित रूप से देशभर के छात्र, पर्यटक, विद्वान और मानवविज्ञानी यहां आते हैं।
भारतीय आदिम जाति सेवक संघ का 24 अक्टूबर 1948 को पूज्य ठक्कर बापा द्वारा गठन किया गया था। यह राष्ट्रीय स्तर का स्वैच्छिक संगठन है। ठक्कर बापा सर्वेंट्स ऑफ इंडियन सोसायटी के समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता थे। एक निकट सहयोगी होने के नाते महात्मा गांधी ने उन्हें अछूतों की सेवा करते हुए जनजातीय लोगों की गरीबी की गहरी जड़ों को हटाने के लिए काम करने हेतु प्रोत्साहित किया। संघ के निर्माण में उन्हें अन्य प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर के सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की सक्रिय भागीदारी भी प्राप्त हुई। संघ के पहले अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे, जो देश के पहले राष्ट्रपति बने और जब तक जीवित रहे वे राष्ट्रपति पद पर बने रहे।
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