आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि बजट 2019-20 में पेश की गई मध्यावधि राजकोषीय नीति (एमटीएफपी) के तहत 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत किया गया, जिससे बाद में भी अपेक्षा की गई कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत का लक्षित स्तर कायम रहेगा। समीक्षा में यह भी बताया गया कि एमटीएफपी परियोजनाओं के बल पर 2019-20 में केंद्र सरकार की देनदारियां सकल घरेलू उत्पाद के 48 प्रतिशत तक कम हो जायेंगी। केंद्र सरकार के ऋण के घटते लक्षण से 2020-21 में इसके जीडीपी के 46.2 प्रतिशत तथा 2021-22 में 44.4 प्रतिशत तक पहुंचने की आशा है।
केंद्र सरकार का वित्त
आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में वृद्धि तथा सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में प्राथमिक घाटे में कमी होने से, पिछले कई वर्षों के दौरान, केंद्र सरकार के वित्तीय प्रबंधन में सुधार हुआ है। 2019-20 के प्रथम 8 महीने के दौरान, अप्रैल-नवम्बर, 2019 में, पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में, राजस्व प्राप्तियों में 13 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई, जो गैर-कर राजस्व में महत्वपूर्ण वृद्धि से प्रेरित था।
इसके अलावा, आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि 2019-20 के दौरान (दिसंबर, 2019 तक), जीएसटी की कुल मासिक वसूली 5 गुणा बढ़कर 1,00,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई। अप्रैल से नवम्बर, 2019 के दौरान, केंद्र एवं राज्यों के लिए कुल जीएसटी की वसूली 8.05 लाख करोड़ थी, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 3.7 प्रतिशत वृद्धि दर्शाता है।
प्रत्यक्ष करों में, व्यक्तिगत आयकर में 7 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि निवेश आकर्षित करने तथा रोजगार सृजन के लक्ष्य से कंपनियों की आयकर दरों में महत्वपूर्ण कटौती की गई है। नवम्बर, 2019 तक, केंद्र सरकार ने 7.51 लाख करोड़ रुपये का कुल कर राजस्व वसूल किया है, जो बजटीय अनुमान का 45.5 प्रतिशत है। बजट-पूर्व समीक्षा में बताया गया है कि केंद्र की वास्तविक गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां 0.29 लाख करोड़ रुपये हुई, जो कई प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप तेजी से बढ़ने वाली हैं।
पूंजीगत व्यय तिगुना हुआ
समीक्षा में व्यय के संघटन एवं गुणवत्ता में सुधार के महत्व पर जोर दिया गया है, जबकि राजकोषीय मापदंडों की सीमाओं का पालन किया गया है। इसमें बताया गया है कि सब्सिडियों पर बजटीय व्यय में सुधार के लक्ष्यों द्वारा महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। सब्सिडियों, विशेषकर खाद्य सब्सिडी को और भी अधिक सुसंगत बनाने की गुंजाइस है।
समीक्षा के अनुसार 2019-20 के बजटीय अनुमान में पूंजीगत व्यय में 2018-19 की तुलना में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि द्वारा 3.39 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। व्यय के बारे में यदि ध्यान दें तो, अप्रैल से नवम्बर, 2019-20 के दौरान कुल व्यय में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के दौरान मोटे तौर पर तीन गुना वृद्धि के साथ पूंजीगत व्यय बढ़ने से संभव हुआ।
जीडीपी एवं ऋण के अनुपात में सुधार
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, जीडीपी के अनुपात के रूप में, केंद्र सरकार की कुल देनदारियां निरंतर घट रही हैं, जो विशेषकर एफआरबीएम अधिनियम, 2003 को लागू करने के बाद संभव हुआ है। मार्च, 2019 के अंत में केंद्र सरकार की कुल देनदारियां 84.7 लाख करोड़ रुपये थी, जिसका 90 प्रतिशत हिस्सा सार्वजनिक ऋण है और जिसे निम्न मुद्रा तथा ब्याज दर जोखिमों द्वारा श्रेणीबद्ध किया जाता है। केंद्र सरकार के ऋण के परिपक्वता संबंधी विवरण में सुधार होना इसकी अन्य विशेषताओं में शामिल है।
राज्यों के लिए अधिक धन
इसके अलावा, इस दस्तावेज में बताया गया है कि 14वें वित्त आयोग के सुझावों के बाद राज्यों को अधिक धन अंतरित किये गए हैं और उन्हें अधिक स्वायतता दी गई है कि वे अपनी जरूरतों के अनुसार धन का इस्तेमाल कर पाएंगे। राज्यों के लिए कुल अंतरित धन में 2014-15 और 2018-19 (संशोधित अनुमान) के बीच सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। बजटीय अनुमान 2019-20 के अनुसार, राज्यों के कर तथा गैर-कर राजस्व में 2018-19 के बजटीय अनुमान की तुलना में कम वृद्धि होने का अनुमान है। हालांकि राज्य वित्तीय सुदृढीकरण के मार्ग पर अग्रसर हैं और एफआरबीएम अधिनियम में निर्धारित लक्ष्यों के भीतर राजकोषीय घाटे को नियंत्रित किया है। हालांकि, उद्य बॉन्डों, कृषि ऋण माफी तथा वेतन आयोग लागू होने के कारण, वित्तीय बाधाओं की पृष्ठभूमि में राज्यों द्वारा ऋण को कायम रखना एक चुनौती बना हुआ है।
अंत में, आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि मांग को बढ़ाने तथा उपभोक्ताओं की भावनाओं का ख्याल रखने के क्रम में उपभोक्ताओं के अनुकूल राजकोषीय नीति पर जोर देने की जरूरत है। जीएसटी के राजस्व में उछाल आने, सब्सिडियों को सुसंगत बनाने तथा निवेश बढ़ाने के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को आसान बनाने के साथ-साथ जीएसटी के कार्यान्वयन में आसानी तथा कंपनी कर में कमी होने जैसे संरचनात्मक सुधारों के बल पर आर्थिक वृद्धि पुनर्जीवित होगी।
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