प्रवासी पक्षियों के लिए टिकाऊ पर्यावास का निर्माण करने के भारत के प्रयासों, जिनकी हाल ही में गाँधी नगर में सम्पन्न ‘सीओपी- 13 सम्मेलन’ काफी सराहना की गई थी, का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘’भारत पूरे साल कई प्रवासी प्रजातियों का आशियाना बना रहता है। अलग-अलग इलाकों से पांच-सौ से भी ज्यादा किस्म के पक्षी यहां आते हैं।‘’ उन्होंने कहा कि आने वाले तीन वर्षों तक भारत प्रवासी प्रजातियों पर होने वाले ‘सीओपी सम्मेलन’ की अध्यक्षता करेगा। उन्होंने कहा कि इस अवसर को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए इन प्रयासों के बारे में जनता अपने सुझाव जरुर भेजें। उन्होंने मेघालय में पाई जाने वाली दुर्लभ प्रजाति की मछली का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, ‘’हमारे आस-पास ऐसे बहुत सारे अजूबे हैं, जिनका अब तक पता नहीं लगाया गया हैं। इन अजूबों का पता लगाने के लिए खोजी जुनून जरुरी होता है।‘’
उन्होंने महान तमिल कवियत्री अव्वैयार को उद्धृत करते हुए कहा, “कट्टत केमांवु कल्लादरु उडगड़वु, कड्डत कयिमन अड़वा कल्लादर ओलाआडू”। इसका अर्थ है कि हम जो जानते हैं, वह महज़, मुट्ठी-भर रेत के समान है, लेकिन जो हम नहीं जानते हैं, वह अपने आप में पूरे ब्रह्माण्ड के समान है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस देश की विविधता के साथ भी ऐसा ही है जितना जाने उतना ही कम है। उन्होंने कहा कि हमारी जैव विविधता पूरी मानवता के लिए अनोखा खजाना है जिसे हमें संजोना है, संरक्षित रखना है।
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