एक किसान के दो पुत्र थे एक पढ़ा लिखा और दूसरा मूर्ख।जो पढ़ा लिखा था वह शहर में रहता था,और जो मूर्ख था वो गाँव में रहकर खेतों पर काम करता था।वह भी लगन के साथ।
एक दिन किसान के मन में आया क्यूँ न बडे बेटे से शहर जाकर मिल लूँ वो पढाई करता भी या नही देख लूँगा। अतःवह शहर गया बेटे से मिलने। पर ये क्या? वह तो शहर के वातावरण में इस तरह मशगूल हो चुका था कि दोस्तों के सामने पिताजी को पिताजी कहने पर भी हिचक हो रही थी।उसका व्यवहार उदंड हो चुका था,शिक्षा के साथ उसकी संस्कार गायब थी जिससे किसान को बहुत दुख हुआ और उसने मन में गहरी सोच और कठोर निर्णय लेने की ठान ली
अतः किसान भारी मन से गाँव लौट आया।और अपने छोटे के साथ खेतो पर काम करने लगा छोटे का मेहनत नित रंग ला रही थी उसके खेतो में हरे हरे पौधे गजब ढा रहे थे। उसकी मेहनत देखकर किसान फक्र कर रहा था।एक दिन बड़ा बेटा गाँव आया जैसे ही पिताजी के सामने हुआ पिता ने कहा! देखो, शहर के बाबू, आज तुम्हारे शहर की बाबूगिरी छोटे की मिहनत की वजह से है और तूने उस मिहनत को ही पहचानने से इन्कार करते हो एक छोटा है भला ही वो मूर्ख है पर लाखो की भीड़ में वो मुझे पहचान लेगा।क्योंकि उसे शिक्षा नही मिली पर संस्कार में वो तुमसे अव्वल है इसलिए आज से तुम खेतो में काम करोगे और शहर के खर्चे मै बंद कर दूँगा ताकि कुछ संस्कार तेरे अंदर भी आ सके और किसान ने उसे शहर जाने के सारी सहूलियत बंद कर उसे गाँव में ही रहकर खेतो में काम करने को कहा!थोडे दिन तो आनाकानी होती रही लेकिन बाद में वो भी रम गया और अच्छी तरह खेती संभालने लगा ।गाँव की समाजिकता देखकर उसे भी समाज और बडो का इज्जत करना आ गया ।अब वह एक नेक किसान बन गया था और पिताजी यह परिवर्तन देख अपने बेटो पर गर्व महसूस कर रहे थे।
इस कहानी का मूल उद्देश्य यह है कि शिक्षा जरूरी है पर वह शिक्षा किस काम की जहाँ संस्कार का दम घोंटा जाय।शिक्षा जरूरी है पर संस्कार के साथ ।शिक्षा प्राप्त कर लेने से ही संस्कार नही होते संस्कार के लिए मेहनत और सामाजिक परिवेश की जरूरत होती है साथ ही साथ दूसरो के प्रति लगाव इज्जत और अपनापन की प्रवृत्ति जागृत होती है । वेशक शिक्षा एक मजबूत स्तंभ है जिसमे संस्कार एक धूरी का काम करती है।दोनो के साथ होने पर ही मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हो सकता है अन्यथा नहीं।
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