सदस्यों का स्वागत करते हुए श्री प्रधान ने कहा कि इस्पात भारत के औद्योगिकी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, क्योंकि यह महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे बुनियादी ढांचा, विनिर्माण और मोटर वाहन के लिए एक प्रमुख निविष्टि है। भारतीय इस्पात की क्षमता धीरे-धीरे बढ़कर 142 एमटीपीए हो गई है और देश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक बन गया है। वर्ष 2024-25 तक इस्पात का कुल उपभोग करीब 160 एमटीपीए तक पहुंचने की उम्मीद है और सरकार इस्पात के घरेलू उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा दे रही है। इस्पात के कुल उत्पादन में करीब 55 प्रतिशत योगदान गौण इस्पात उत्पादकों का है और यह मूल्य श्रृंखला में रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। श्री प्रधान ने कहा कि वैश्विक दृष्टि से इस्पात उद्योग क्लस्टर मॉडल में फल-फूल रहा है, क्योंकि ये इकाईयां प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार वैश्विक बैंच मार्क की तर्ज पर नए इस्पात समूहों के सृजन को बढ़ावा देने की इच्छुक है और वर्तमान समूहों को व्यवस्थित करके सही संस्थागत तंत्र स्थापित करना चाहती है। श्री प्रधान ने कहा कि इस्पात मंत्रालय ने भारत में इस्पात समूहों के विकास के लिए एक मसौदा नीति तैयार की है और यह इस्पात इकाईयों के सामने मौजूद वर्तमान चुनौतियों के समाधान में मदद करने और उनके विकास की संभावनाओं को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है। इस नीति में विभिन्न हितधारकों, विशेषकर राज्य सरकारों, उद्योग और जनता की भूमिका और जिम्मेदारियों को ध्यान में रखा जाएगा।
बैठक में माननीय सांसदों ने इस्पात क्षेत्र विशेषकर समूह नीति के संबंध में अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
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