ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई हाथी और बंगाल फ्लोरिकन को प्रवासी प्रजातियों के बारे में संयुक्त राष्ट्र समझौते के परिशिष्ट-I में शामिल करने के भारत के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से गांधीनगर में चल रहे प्रवासी प्रजातियों पर समझौते (सीएमएस) के पक्षकारों के चल रहे तेरहवें सम्मेलन में आज सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है।
एशियाई हाथी
भारत सरकार ने भारतीय हाथी को राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित किया है। भारतीय हाथी को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध करके उच्चतम कानूनी सुरक्षा भी प्रदान की गई है।
सीएमएस समझौते की अनुसूची-I में भारतीय हाथी को शामिल करने से भारत की सीमाओं से बाहर भारतीय हाथी के प्रवास की प्राकृतिक जरूरत पूरी होने के साथ-साथ सुरक्षित वापसी भी सुनिश्चित होगी। इस प्रकार हमारी भावी पीढ़ियों के लिए इस लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा। नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार की छोटी उप-आबादी के साथ अन्तर्मिश्रण से इन हाथियों के आबादी को व्यापक ‘जीन’ आधार उपलब्ध होगा। इससे इनके प्रवासी मार्गों के कई हिस्सों में मानव हाथी संघर्ष को कम करने में भी मदद मिलेगी।
मुख्यभूमि के एशियाई हाथी/भारतीय हाथी भोजन और आश्रय की तलाश में राज्यों और देश के अनेक हिस्सों में लंबी दूरी तय करते हैं। कुछ हाथी निवासी हैं और अन्य हाथी वार्षिक प्रवास चक्रों में नियमित रूप से प्रवास करते हैं। इन निवासी और प्रवासी आबादी का अनुपात क्षेत्रीय आबादी के आकार के साथ-साथ उनके आवासों की सीमा, कमी और विखंडन पर निर्भर करता है।
अधिकांश हाथी रेंज राज्यों में एशियाई हाथी संरक्षण में सामने आने वाली मुख्य चुनौतियों में आवास की कमी होना, विखंडन और मानव हाथी संघर्ष के साथ-साथ हाथियों का शिकार और अवैध व्यापार शामिल हैं।
अतिरिक्त महानिदेशक (वन्यजीव) श्री सौमित्र दासगुप्ता ने प्रस्ताव रखते हुए कहा कि भारत, मुख्य भूमि एशियाई हाथियों/भारतीय हाथियों (एलिफस मैक्सिमस सिग्नस) की बड़ी आबादी का प्राकृतिक घर है। इसलिए इस प्रजाति के संरक्षण को बढ़ावा देना और सीएमएस समझौते के परिशिष्ट –I के तहत उप-प्रजातियों को शामिल करके सभी रेंज देशों में हाथियों का प्राकृतिक प्रवास चाहता है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक प्रसिद्ध, गंभीर रूप से लुप्तप्राय और संरक्षण पर निर्भर पक्षी प्रजाति है, जो प्रवास के लिए अनेक देशों की सीमाओं को पार करती है। इस कारण पाकिस्तान-भारत और सीमावर्ती क्षेत्र में शिकार और भारत में बिजली-लाइन टकराव जैसी चुनौतियों से इसका प्रवासन प्रभावित होता है। सीएमएस के परिशिष्ट-I में इन प्रजातियों को शामिल करने से अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण निकायों और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौतों से इन प्रजातियों का देशों की सीमाओं में भी संरक्षण करने में मदद मिलेगी।
द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है इसकी आबादी लगभग 100–150 के बीच है। यह मुख्य रूप से राजस्थान के थार रेगिस्तान तक सीमित है। पिछले 50 वर्षों के दौरान इस पक्षी की आबादी 90% घटी है और भविष्य में आबादी और घटने की आशंका है।
बंगाल फ्लोरिकन
बंगाल फ्लोरिकॉन एक प्रसिद्ध, गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है। जो सीमा पार करके प्रवास करती है। यह प्रवासन में भूमि उपयोग परिवर्तन, भारत-नेपाल सीमा पर बिजली लाइनों से टकराव जैसी चुनौतियों का सामना करती है। सीएमएस के परिशिष्ट-I में इन प्रजातियों को शामिल करने से अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण निकायों और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौतों से इन प्रजातियों का देशों की सीमाओं में भी संरक्षण करने में मदद मिलेगी।
आवास कम होने और शिकार होने के कारण इनकी आबादी कम हो रही है। यह प्रजाति असम के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारतीय उपमहाद्वीप में संरक्षित क्षेत्रों से बाहर प्रजनन नहीं करती हैं।
गुजरात में चल रहे सीएमएस सम्मेलन में पर्यावरण के ‘सुपर ईयर’ की शुरूआत हुई है। इसमें सितंबर में संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन और 2020 के अंत में संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन का समापन शामिल होगा जिसमें अगले दशक के लिए नई वैश्विक जैव विविधता रणनीति-2020 के बाद वैश्विक जैवविविधता ढांचा अपनाया जाएगा।
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