इस रोग की जांच के लिए सामूहिक जांच एवं उपचार कार्यक्रमों में और मलेरिया नियंत्रण के उपायों की निगरानी में माइक्रोस्कोपी और प्रोटीन प्रतिरक्षा आधारित रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) का उपयोग किया जाता है। हालांकि इसके तहत करीब 30 से 50 प्रतिशत कम घनत्व वाले संक्रमण छूट जाते हैं जिसमें आमतौर पर दो परजीवी/ माइक्रोलीटर होते हैं। इन्हें अक्सर स्पर्शोन्मुख वाहक में देखे जाते हैं जो संक्रमण के मूक भंडार के रूप में कार्य करते हैं और वे मच्छरों के माध्यम से रोग को संक्रमित करने में समर्थ होते हैं। स्थानिक क्षेत्रों में स्पर्शोन्मुख वाहक की पहचान मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रमों की एक प्रमुख बाधा मानी जाती है। इसके लिए अधिक संवेदनशीलता के साथ नए नैदानिक तरीकों की आवश्यकता है।
इस नए अध्ययन में इंस्टीच्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज के डॉ. वी. अरुण नागराज और जिग्सॉ बायो सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के श्रीनिवास राजू के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम शामिल है। इस टीम ने जीनोम खनन की एक नई अवधारणा का इस्तेमाल कियाजो पूरे मलेरिया परजीवी जीनोम में मौजूद मल्टी-रिपीट सीक्वेंस (आईएमआरएस) की पहचान कर उसे विकसित होने से रोकने के लिए लक्षित करती है। इसे मलेरिया निदान के लिए ‘अति संवेदनशील’क्यूपीसीआर परीक्षण कहा गया है।
भारत के मलेरिया प्रभवित क्षेत्रों से एकत्र किए गए क्लीनिकल नमूनों के सत्यापन से पता चलता है कि यह जांच पारंपरिक तरीकों से लगभग 20 से 100 गुना अधिक संवेदनशील थी। इसके जरिये सबमाइक्रोस्कोपिक नमूनों का भी पता लगाया जा सकता है। अत्यधिक संवेदनशील अन्य तरीकों की तुलना में यह चार से आठ गुना बेहतर दिखी। साथ ही यह प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के लिए बेहद खास दिखी जो मलेरिया परजीवी की सबसे घातक प्रजाति है। जबकि प्लास्मोडियम विवैक्स प्रजाति के साथ क्रॉस-रिएक्शन नहीं किया जो अपेक्षाकृत कम घातक मलेरिया की पुनरावृत्ति का सबसे प्रुखख कारण है।
इंडिया साइंस वायर से बातचीत करते हुएडॉ. नागराज ने कहा कि विभिन्न प्रजातियों की एक साथ पहचान के लिए बहुविकल्पी जांच प्रक्रिया विकसित करने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा, ‘हमारे अध्ययन से अति संवेदनशील, पॉइंट-ऑफ-केयर मौलिक्यूलर निदान का विकास हो सकता है जिसे लघु, आइसोथर्मल, माइक्रोफ्लूडिक प्लेटफॉर्म और लैब-ऑन-ए-चिप उपकरणों के जरिये खोजा जा सकता है। आईएमआरएसदृष्टिकोण अन्य संक्रामक रोगों के निदान के लिए एक प्रौद्योगिकीमंच के रूप में भी काम कर सकता है।’
भारत ने 2030 तक मलेरिया का उन्मूलन करने और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक राष्ट्रीय ढांचा विकसित किया हैजो प्रभावित क्षेत्रों में स्पर्शोन्मुख वाहक की पहचान करता है और उसेके संक्रमण को साफ करता है। नई खोज इसमें मदद कर सकती है। डीबीटी के जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद ने इस परियोजना का वित्त पोषित किया। (विज्ञान समाचार)
(प्रमुख शब्द : प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम, प्लास्मोडियम विवैक्स, वायरलेंट, उन्मूलन, संवेदनशीलता, परजीवी, क्यूपीसीआर, जांच, पॉइंट-ऑफ-केयर, मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स, मिनिएट्राइज्ड, आइसोथर्मल, माइक्रोफ्लूडिक प्लेटफॉर्म, लैब-ऑन-ए-चिप)
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