सेमिनार में मुख्य अतिथि रक्षा राज्य मंत्री श्री श्रीपद नाइक थे। जबकि मुख्य वक्तव्य रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार द्वारा दिया गया। इस सेमिनार में उद्योग जगत के दिग्गजों, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और उद्योग संगठनों के प्रतिनिधियों एवं शिक्षाविदों ने भाग लिया।
इस सेमिनार ने माननीय प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ के सपने को साकार करने के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा निभाई गई सक्रिय भूमिका को प्रदर्शित किया।
इस सेमिनार का समापन एक नॉलेज बुक के विमोचन के साथ हुआ जिसमें रक्षा उत्पादन विभाग द्वारा शुरू की गई/होने वाली डीजीक्यूए की विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी गई है। प्रमुख योजनाएं इस प्रकार हैं:
मिशन रक्षा ज्ञान शक्ति: इस योजना का उद्देश्य भारतीय रक्षा विनिर्माण वातावरण में बौद्धिक संपदा (आईपी) संस्कृति को विकसित करना है। इसी क्रम में एक बौद्धिक संपदा सुविधा प्रकोष्ठ (आईपीएफसी) का गठन किया गया है जिसने डेढ़ वर्ष की अवधि में आईपीआर पर 15,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया और 1000 से अधिक नए आईपीआर अनुप्रयोगों को सक्षम बनाया। इस योजना का उद्देश्य एक ऐसा ढांचा तैयार करना है जो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए नए विचारों और नवाचार को बढ़ावा देता है।
स्व-प्रमाणन एवं ग्रीन चैनल: भारतीय कंपनियों को ग्रीन चैनल का दर्जा मिलने और स्व-प्रमाणन की सुविधा मिलने से निकट भविष्य में निरीक्षण की समयसीमा और लागत में कमी आने की उम्मीद है। इन योजनाओं का उद्देश्य उन परिपक्व उत्पादों को लक्षित करना है जहां घरेलू रक्षा उद्योग को प्रौद्योगिकी में उचित विशेषज्ञता हासिल है।
रक्षा निर्यात संवर्द्धन योजना (डीईपीसी): स्वदेशी विनिर्माताओं को अपने उत्पादों का विपरण वैश्विक स्तर पर करने के लिए अवसर उपलब्ध कराने और वार्षिक रक्षा निर्यात को वर्ष 2025 तक बढ़ाकर 35000 करोड़ रुपये करने के उद्देश्य से यह योजना शुरू की गई है।
थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन स्कीम: इस योजना के तहत थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन (टीपीआई) एजेंसियां भारत में निजी उद्योग द्वारा विनिर्मित रक्षा उत्पादों के लिए क्वालिटी एश्योरेंस का कार्य करेंगी।
रक्षा परीक्षण बुनियादी ढांचा योजना (डीटीआईएस): रक्षा मंत्रालय/डीडीपी 400 करोड़ रुपये की सहायता राशि उपलब्ध कराते हुए लगभग 6 से 8 अत्याधुनिक परीक्षण केंद्र स्थापित करने की सुविधा प्रदान करेगा। यह घरेलू रक्षा उद्योगों के लिए एक प्रमुख प्रोत्साहन होगा। क्योंकि रक्षा परीक्षण एवं प्रमाणन बुनियादी ढांचा देश में उपलब्ध नहीं है जबकि वह विनिर्माण एवं उत्पादन के लिए आवश्यक है।
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