श्री मंडाविया ने कहा कि औषधि क्षेत्र में बड़े एफडीआई को आकर्षित करने के उद्देश्य से सरकार नियमित आधार पर एफडीआई नीति की समीक्षा करती है ताकि एफडीआई नीति को उदार और सरल बनाया जा सके। इस प्रकार कारोबारी सुगमता मुहैया कराने से देश के निवेश वातावरण में सुधार होगा। उन्होंने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत विभिन्न उपाए किए गए हैं जिससे निवेश को आसान बनाने, नवाचार को बढ़ावा देने और देश में जबरदस्त कारोबारी माहौल तैयार करने को प्रोत्साहन मिलेगा।
वर्ष 2015-16 में दवा एवं औषधि क्षेत्र में एफडीआई इक्विटी का अंतर प्रवाह 4,975 करोड़ रुपये रहा था। लेकिन वह बढ़कर वर्ष 2016-17 में 5,723 करोड़ रुपये और वर्ष 2017-18 में 6,502 करोड़ रुपये हो गया।
देश के दवा एवं औषधि क्षेत्र में 2014 के बाद प्राप्त एफडीआई निवेश का विवरण निम्नलखित है:
क्रम संख्या | वित्त वर्ष | कुल एफडीआई निवेश (करोड़ रुपये में) |
1. | 2014-15 | 9,052 |
2 | 2015-16 | 4,975 |
3 | 2016-17 | 5,723 |
4 | 2017-18 | 6,502 |
5 | 2018-19 | 1,842 |
6 | 2019-20 (अप्रैल से सितंबर) | 2,065 |
सरकार ने जून 2016 में औषधि क्षेत्र के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में संशोधन किया। इसके जरिए नई औषधि परियोजनाओं के लिए स्वचालित मार्ग से 100% एफडीआई और पुरानी औषधि परियोजनाओं के लिए स्वचालित मार्ग से 74% एफडीआई और उसके बाद सरकार की मंजूरी से एफडीआई का प्रावधान किया गया।
एफडीआई काफी हद तक निजी व्यावसायिक निर्णयों का विषय है और एफडीआई प्रवाह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है जैसे- प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, बाजार के आकार, बुनियादी ढांचा, राजनीतिक एवं सामान्य निवेश माहौल के साथ-साथ वृहद-आर्थिक स्थिरता और विदेशी निवेशकों के निवेश निर्णय।
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