सितंबर 2019 तक भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधर कर 433.7 बिलियन डॉलर हो गई। भुगतान संतुलन की स्थिति मार्च 2019 में 412.9 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था। ऐसा चालू खाता घाटा (सीएडी) के 2018-19 के 2.1 प्रतिशत से घटकर 2019-20 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 1.5 प्रतिशत कम होने के कारण हुआ। निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह शानदार रही और 2019-20 के पहले आठ महीनों में 24.4 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित हुआ। यह निवेश 2018-19 की समान अवधि की तुलना से काफी अधिक है। 2019-20 की पहली छमाही में अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई कुल रकम 2018-19 में कुल प्राप्तियों से 50 प्रतिशत से भी अधिक 38.4 बिलियन डॉलर रही। विश्व बैंक की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 17.5 मिलियन अप्रवासी भारतीयों ने भारत को 2018 में विदेशों से प्राप्त होने वाली रकम के मामले में शीर्ष पर पहुंचा दिया।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक स्थिति में है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जनवरी, 2020 तक 461.2 बिलियन डॉलर रहा। सितंबर 2019 के अंत तक विदेशी ऋण का स्तर जीडीपी के 20.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर रहा। सकल घरेलू उत्पाद में भारत की बाहरी ऋण देनदारियां जून 2019 के अंत में बढ़ी हैं। इन देनदारियों में ऋण तथा इक्विटी घटक शामिल हैं। यह वृद्धि एफडीआई, पोर्टफोलियो प्रवाह तथा बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) में बढ़ोत्तरी से प्रेरित हुई।
व्यापार संरचना
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने के कारण 2009-14 से 2014-19 में भारत का वस्तु व्यापार संतुलन सुधरा है। वस्तुओं के निर्यात और जीडीपी अनुपात में 11.3 प्रतिशत की कमी आई। ऐसा वैश्विक मांग में कमजोरी तथा 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही में अधिक व्यापार तनाव के कारण हुआ। पेट्रोलियम, तेल तथा लुब्रिकेंट (पीओएल), मूल्यवान पत्थर, ड्रग फॉर्मूलेशन तथा बाइलॉजिकल, सोना और अन्य बेशकीमती धातु निर्यात के मामले में शीर्ष पर बने रहे। सबसे अधिक निर्यात अमेरिका को किया गया। इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, चीन और हांगकांग का स्थान है।
वाणिज्यिक आयात और जीडीपी अनुपात में भी कमी आई और इससे भुगतान संतुलन की स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। ऐसा आयात बास्केट में अधिक मात्रा में कच्चे तेल की उपलब्धता के कारण हुआ। सोने की कीमतों में वृद्धि के बावजूद सोना आयात का हिस्सा स्थिर बना रहा। कच्चा पेट्रोलियम, सोना, पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला, कोक आदि आयात के शीर्ष पर बने रहे। भारत का सबसे अधिक आयात चीन, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात तथा सऊदी अरब से होता है।
आर्थिक समीक्षा 2019-20 में कहा गया है कि गैर-पीओएल-गैर-सोना आयात जीडीपी वृद्धि के साथ सकारात्मक रूप से जोड़कर समझा जाता है, लेकिन गैर-पीओएल-गैर-तेल आयात 2009-14 से 2014-19 में जीडीपी के अनुपात में कम हुए, जब जीडीपी की वृद्धि में तेजी आई। संभवतः ऐसा खपत प्रेरित वृद्धि के कारण हुआ, जबकि निवेश दर में कमी आई। निवेश में निरंतर गिरावट के कारण जीडीपी वृद्धि की दर धीमी हो गई, खपत में कमजोरी आई, निवेश परिदृश्य निराशाजनक हुआ और परिणामस्वरूप इससे जीडीपी वृद्धि कम हो गई और साथ-साथ 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही में जीडीपी के अनुपात में गैर-पीओएल-गैर स्वर्ण आयात में कमी आई।
वैश्विक आर्थिक माहौल
2019 में वैश्विक परिदृश्य में अनुमानित 2.9 प्रतिशत की वृद्धि के अनुरूप वैश्विक व्यापार में 1.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। यह वृद्धि शीर्ष पर 2017 में 5.7 प्रतिशत रही। विश्व व्यापार में मंदी अनेक कारणों से दिखी। इन कारणों में निवेश में कमी, पूंजीगत सामानों में खर्च में कटौती तथा कार तथा कार के कलपुर्जों के व्यापार में गिरावट शामिल है। समीक्षा में कहा गया है कि 2020 में वैश्विक व्यापार में 2.9 प्रतिशत का सुधार होगा और वैश्विक आर्थिक गतिविधि सुधार के मार्ग पर आएगी। यद्पि व्यापार तनाव तथा वैश्विक मूल्य श्रृंखला ढांचे में परिवर्तन को लेकर भविष्य की अनिश्चितता बनी हुई है।
व्यापार सहायता
विश्व बैंक द्वारा निगरानी किए जाने वाले संकेतक ‘ट्रेडिंग एक्रॉस बोडर्स’ के अंतर्गत व्यापार सहायता में भारत की रैंकिंग 2016 के 143वें स्थान से सुधर कर 68 हो गई। यह रैंकिंग कारोबारी सुगमता रिपोर्ट में लगभग 190 देशों की समग्र रैंकिंग निर्धारित करती है। डिजिटल तथा सतत व्यापार सहायता 2019 पर संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सर्वेक्षण में भारत ने न केवल व्यापार सहायता स्कोर में 69 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत का सुधार किया, बल्कि एशिया प्रशांत तथा दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया क्षेत्र में अन्य देशों को पीछे छोड़ दिया। सर्वेक्षण में आयात के लिए डायरेक्ट पोर्ट डिलिवरी (डीपीडी) और निर्यात के लिए डायरेक्ट पोर्ट इंट्री (डीपीई) को तेजी से मंजूरी को प्रोत्साहित करने वाली योजना बताया गया। समर्थनकारी दस्तावेजों को ऑनलाइन दाखिल करने के लिए ‘ई-संचित’ और भारतीय कस्टम के लिए अगली पीढ़ी का सॉफ्टवेयर ‘तुरंत’ को भी सफल बताया गया।
व्यापार लॉजिस्टिक्स
भारत का लॉजिस्टिक्स उद्योग उभरता हुआ क्षेत्र है और यह अभी 160 बिलियन डॉलर है। लॉजिस्टिक उद्योग शीघ्र ही 215 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक के अनुसार 2018 में विश्व में भारत का स्थान सुधर कर 44वां हो गया। भारत का स्थान 2014 में 54वां था। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक मानकों के अनुसार भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी की तुलना में वर्तमान 13-14 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत पर लाना है। इसके लिए फास्ट-टैग, भारतमाला, सागरमाला तथा डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसे कदम उत्साहवर्धक होंगे।
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