इन नए उत्पादों में से एक है 'लघु पोत एडवाइज़री और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली' (स्मॉल वेसल एडवाइज़री एंड फोरकास्ट सर्विसेज़ सिस्टम - एसवीएएस)। इसे कई छोटे समुद्री जहाजों, विशेष रूप से मछली पकड़ने वाले जहाजों के परिचालन में सुधार के लिए लाया गया है जो भारत के तटीय जल में विचरण करते हैं। इस दौरान 'स्वेल सर्ज फोरकास्ट सिस्टम' भी लॉन्च किया गया जो भारत की विशाल तटरेखा के पास बसी आबादी के लिए पूर्वानुमान प्रदान करेगा, जो उन लहरों के उफान के चलते कई तरह के नुकसान का सामना करती है। ये लहरें सुदुर दक्षिणी हिंद महासागर से उत्पन्न होती हैं।इन तीन उत्पादों में आखिरी है ‘एलगल ब्लूम इनफॉर्मेशन सर्विस’ (एबीआईएस) जो ऐसी हानिकारक काई यानी शैवालों के खिलने के समय को लेकर जानकारी प्रदान करता है जो तटीय मत्स्य पालन के लिए हानिकारक है और समय-समय पर तटीय आबादी के बीच सांस संबंधी समस्याओं को जन्म देते हैं।
ये तीनों उत्पाद तटीय आबादी और सेवा / उत्पाद उपयोगकर्ताओं के लिए नुकसान को महत्वपूर्ण ढंग से कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। प्रत्येक उत्पाद का विवरण निम्नलिखित हैं:
लघु पोत एडवाइज़री और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली (एसवीएएस): लघु पोत एडवाइज़री और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली दरअसल भारतीय तटीय जल में काम करने वाले छोटे जहाजों के लिए एक नवीन प्रभाव-आधारित सलाह और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली है। ये प्रणाली उपयोगकर्ताओं को दस दिन पहले ही उन संभावित क्षेत्रों के बारे में चेतावनी देती है जहां जहाज पलट सकता है। ये एडवाइज़री 7 मीटर तक की चौड़ाई वाली बीम के छोटे जहाजों के लिए वैध होती है। यह सीमा भारत के सभी 9 तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उपयोग किए जाने वाले मछली पकड़ने के जहाजों की बीम चौड़ाई की पूरी श्रंखला को कवर करती है। ये चेतावनी प्रणाली 'बोट सेफ्टी इंडेक्स’ (बीएसआई) पर आधारित है जो लहर मॉडल के पूर्वानुमानों से प्राप्त होती है जैसे कि बड़ी ऊंचाई वाली लहर, लहर की ढलान, दिशात्मक प्रसार और समुद्र में हवा का तेजी से विकास जो नाव-विशिष्ट है।
स्वेल सर्ज फोरकास्ट सिस्टम: स्वेल सर्ज फोरकास्ट सिस्टम एक नवीन प्रणाली है जो कल्लकाडल यानी महातरंग उमड़ने (स्वेल सर्ज) की भविष्यवाणी के लिए तैयार की गई है जो भारतीय तट और विशेष रूप से पश्चिमी तट के पास होती है। कल्लकाडल / महातरंग उमड़ना दरअसल एकदम से बाढ़ आने की घटना होती है जो स्थानीय हवाओं या तटीय वातावरण में किसी उल्लेखनीय अग्रिम बदलाव के बिना या फिर तटीय वातावरण में किसी भी अन्य स्पष्ट संकेत के बिना होती हैं। इसलिए स्थानीय आबादी इन बाढ़ की घटनाओं से तब तक पूरी तरह अनजान रहती है जब तक कि वे वास्तव में नहीं हो जाती हैं। इस तरह की घटनाएं पूरे साल रुक-रुक कर होती हैं। कल्लकाडल एक स्थानीय बोलचाल की भाषा है जिसका इस्तेमाल केरल के मछुआरों ने भयंकर बाढ़ के प्रकरणों को संदर्भित करने के लिए किया था और 2012 में यूनेस्को ने औपचारिक रूप से इस शब्द को वैज्ञानिक उपयोग के लिए स्वीकार किया था। कल्लकाडल की घटनाओं के दौरान समुद्र भूमि क्षेत्र में प्रवेश कर लेता है और विशाल क्षेत्रों को जलमग्न कर देता है। इन घटनाओं ने विशेष रूप से हिंद महासागर में 2004 में आई सुनामी के बाद ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि ज्यादातर लोग कल्लकाडल को सुनामी मानने की गलती करते हैं। सुनामी और कल्लकाडल / महातरंग उमड़ना दरअसल दो अलग-अलग प्रकार की लहरें होती हैं जिनके कारण और काम करने के तंत्र पूरी तरह से अलग होते हैं। कल्लकाडल 30 ° S के दक्षिण में दक्षिणी महासागर में मौसम की स्थितियों के कारण होता है। भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन से पता चला है कि दक्षिणी हिंद महासागर में विशिष्ट मौसम संबंधी परिस्थितियां लंबी अवधि की महातरंगों (स्वेल) के निर्माण में सहयोग करती हैं। एक बार उत्पन्न होने के बाद ये महातरंगें उत्तर की ओर यात्रा करती हैं और 3-5 दिनों के समय में भारतीय तटों तक पहुंचती हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आती है। यह प्रणाली अब कल्लकाडल की भविष्यवाणी करेगी और संबंधित अधिकारियों को कम से कम 2-3 दिन पहले चेतावनी दी जाएगी, जो स्थानीय अधिकारियों को आपात योजनाएं बनाने और नुकसान को कम करने में मदद करेंगी।
एलगल ब्लूम इनफॉर्मेशन सर्विस (एबीआईएस): काई या शैवालों के खिलने की बढ़ती आवृत्ति मत्स्य, समुद्री जीवन और पानी की गुणवत्ता पर इसके दुष्प्रभाव के कारण एक प्रमुख चिंता का विषय है। भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र ने "भारतीय समुद्र में शैवाल का पता लगाने और निगरानी" के लिए एक सेवा विकसित की है। इसके लक्षित उपयोगकर्ता मछुआरे, समुद्री मत्स्य संसाधन प्रबंधक, शोधकर्ता, पारिस्थितिकी विज्ञानी और पर्यावरणविद् हैं। यह सेवा भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र की समुद्री मछली पकड़ने की सलाह यानि संभावित फिशिंग ज़ोन की एडवाइज़री में इजाफा करती है। आईएनसीओआईएस-एबीआईएस उत्तरी हिंद महासागर के ऊपर पादक प्लवकों (फाइटोप्लांक्टन) के फैलाव और इस स्थानिक-लौकिक घटना को लेकर करीब करीब उसी समय में सीधे जानकारी प्रदान करेगा। तदनुसार उपग्रहों से प्राप्त होने वाले प्रासंगिक आंकड़ों को रोज़ाना एबीआईएस के माध्यम से प्रसारित किया जाएगा। इन आंकड़ों में समुद्र की सतह का तापमान, क्लोरोफिल-ए, एलगल ब्लूम इंडेक्स - क्लोरोफिल, रोलिंग क्लोरोफिल में विसंगति, रोलिंग समुद्री सतह के तापमान में विसंगति, फाइटोप्लांक्टन वर्ग / प्रजाति, फाइटोप्लांक्टन आकार वर्ग और ब्लूम व ग़ैर-ब्लूम क्षेत्रों को अलग अलग बताने वाली एक संयुक्त तस्वीर शामिल है। इसके अलावा चार क्षेत्रों की पहचान ब्लूम हॉटस्पॉट्स के रूप में की गई है। ये क्षेत्र हैं - 1) उत्तर पूर्वी अरब सागर, 2) केरल का तटीय जल, 3) मन्नार की खाड़ी, और4) गोपालपुर का तटीय जल।
No comments:
Post a Comment