वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने भारतीय निर्यातकों की वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए एसईजेड नीति को नया रूप देने की समीक्षा की। बैठक में वर्तमान वैश्विक बाजार की स्थिति को देखते हुए व्यावसायिक सुगमता को सहज बनाने के उद्देश्य से शेष सिफारिशों को लागू करने के तरीकों पर भी चर्चा हुई।
सिफारिशों में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के मद्देनजर एनएफई की गणना में विशेषताओं की समीक्षा, विशेष स्वीकृति के बदले अनुमति दी गई इकाइयों के बीच शुल्क मुक्त परिसंपत्तियों/अवसंरचना को साझा करन, इन्क्लेवों के लिए गैर-अधिसूचना प्रक्रिया को औपचारिक बनाना तथा इसे एसईजेड के विशेष प्रायोजन के वर्तमान प्रावधान से अलग करना शामिल है। क्रियान्वयन की अन्य सिफारिशों में मैन्युफैक्चरिंग जोन की सर्विस को समर्थन, मैन्यु्फैक्चरिंग सक्षम सेवा कंपनियों को अनुमति, विविध सेवाओं को अनुमति के लिए सेवा की परिभाषा को व्यापक बनाना, राज्य की नीतियों के अनुसार जोन के हितधारकों के साथ दीर्घकालिक पट्टा समझौता करने में लचीलापन तथा एसईजेड की अधिसूचना की तिथि से 10 वर्ष से आगे की अवधि में डेवलपर या को-डेवलपर द्वारा बिल्डअप एरिया में कम से कम निर्माण के लिए आवेदन शामिल हैं।
एसईजेड के लिए अन्य कदमों में एक जोन से हटाकर एसईजेड इकाई को दूसरे जोन में जाने के लिए विकास आयुक्त को शक्तियां प्रदान की गईं। विदेशी मुद्रा या एनएफई में गिनती किए गए भारतीय रुपये के बदले डीटीए में सर्विस सप्लाई, एसईजेड में इकाई लगाने की अनुमति, कैफेटेरिया, जिम्नेज़ीअम, क्रेच तथा अन्य सुविधाओं के लिए विश्वास का माहौल बनाना।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने बाबा कल्याणी समिति का गठन किया था। इसका उद्देश्य भारत की एसईजेड नीति का अध्ययन करना था। समिति ने नवम्बर, 2018 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं। समिति का उद्देश्य एसईजेड नीति का मूल्यांकन करना और इसे डब्ल्यूटीओ मानकों के अनुरूप बनाना, एसईजेड में खाली पड़ी जमीन के अधिकतम उपयोग के उपाय सुझाना, अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों के आधार पर एसईजेड नीति में परिवर्तन का सुझाव देना तथा तटीय आर्थिक क्षेत्रों, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर, राष्ट्रीय औद्योगिक मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र तथा फूड और टेक्सटाइल पार्क जैसी सरकार की योजनाओं के साथ एसईजेड नीति का विलय करना था।
यदि भारत को 2025 तक पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है तो मैन्यु्फैक्चरिंग स्पर्धा तथा सेवाओं के वर्तमान माहौल को बुनियादी रूप में बदलना होगा। स्वास्थ्य देखभाल, वित्तीय सेवाओं, विधि, मरम्मत तथा डिजाइन सेवाओं जैसे क्षेत्रों में आईटी तथा आईटीई जैसे सेवा क्षेत्र की सफलताओं को प्रोत्साहित करना होगा।
भारत सरकार ने अग्रणी मेक इन इंडिया कार्यक्रम के हिस्से के रूप में 2022 तक 100 मिलियन रोजगार सृजन करने तथा मैम्युफैक्चरिंग क्षेत्र से जीडीपी का 25 प्रतिशत प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया है। सरकार की योजना 2025 तक मैन्यु्फैक्चरिंग मूल्य को बढ़ाकर 1.2 ट्रिलियन डॉलर करना है। यद्यपि यह योजना भारत को विकास पथ पर ले जाएंगी, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को गति देने के लिए वर्तमान नीति रूपरेखा का मूल्यांकन आवश्यक है। साथ-साथ नीति को डब्ल्यूटीओ विनियमों के अनुरूप बनाना होगा।
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