श्री नकवी ने कहा कि जिस प्रकार हम अपने मौलिक अधिकारों के प्रति सजग रहते हैं, उसी प्रकार हमें अपने मौलिक कर्तव्यों को भी समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य एक-दूसरे से जुड़े हैं। राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करना, प्रत्येक नागरिक के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि से संबंधित मौलिक अधिकारों की रक्षा करना पूर्णतया आवश्यक है, उसी प्रकार जनप्रतिनिधि सहित, एक नागरिक के रूप में राष्ट्र के लिए हमारे कर्तव्यों को पूरा करने की भी आवश्यकता है। कर्तव्यों के साथ ही हमारे अधिकार सुनिश्चित होते हैं।
श्री नकवी ने कहा कि लोगों को उनके अधिकार सौंपने के लिए समुचित वातावरण तभी तैयार हो सकता है, जबकि प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करे। इस संबंध में जनप्रतिनिधियों को आम लोगों के लिए एक उदाहरण पेश करना चाहिए। हमारा देश न केवल सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में उभरा है, बल्कि यह प्रत्येक समाज के अधिकारों के संरक्षण की गारंटी के रूप में कार्यरत संविधान सहित, एक फूलती-फलती संसदीय प्रणाली के साथ एक सशक्त, बहुलवादी संस्कृति के सुन्दर प्रतीक के रूप में भी उभरा है।
श्री नकवी ने कहा कि नागरिकों के अधिकार और मौलिक कर्तव्य समान रूप से महत्वपूर्ण है। अधिकार और उत्तरदायित्व, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं तथा ये साथ-साथ चलते हैं। यदि हमारे पास अधिकार हैं, तो उन अधिकारों से जुड़े कुछ उत्तरदायित्व भी हैं। हम जहां भी रहते हैं, चाहे वह घर हो, समाज हो, गांव हो, राज्य हो अथवा देश हो, अधिकार और उत्तरदायित्व हमारे साथ-साथ होते हैं।
श्री नकवी ने कहा कि देश के एक अच्छे नागरिक के रूप में हमारे अधिकारों और कर्तव्यों को जानना और सीखना जरूरी है। साथ ही, समाज और देश के कल्याण के लिए उन्हें जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाना होगा। यदि जीवन को व्यक्तिगत कार्यों के माध्यम से बदला जा सकता है, तो समाज के सामूहिक प्रयासों से देश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने में कोई संदेह नहीं। इसलिए, समाज तथा सम्पूर्ण देश की समृद्धि एवं शांति के लिए मौलिक कर्तव्यों को पूरा करना आवश्यक है।
श्री नकवी ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद सरकार की प्रणाली के विकल्प के रूप में, हमारे पूर्वजों ने संसदीय लोकतंत्र को चुनना उचित समझा। इसके द्वारा सरकार अपने निर्वाचकों के प्रति उत्तरदायी होती है। मौलिक अधिकार एवं मौलिक कर्तव्य इस उत्तरदायित्व का मंत्र है। इस प्रणाली में, विधायी सदन लोगों के विचारों और चिंताओं को आवाज प्रदान करने का माध्यम बन गये हैं। इसके अलावा प्रभावकारी कानून पारित करने के क्रम में, कानून निर्माताओं के लिए समय, ऊर्जा एवं सूचना की आवश्यकता होती है। यह इस संदर्भ में है कि कानून निर्माताओं का ध्यान विधायी कार्यों पर जोर देना और क्षमता निर्माण करना होना चाहिए। किसी संसदीय लोकतंत्र की सफलता में इसका सर्वाधिक महत्व है।
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