Tuesday, January 21, 2020

कविता - तैयारी कर ली है

मिट्टी की स्याही लेकर उंगलियो की कलम बनाकर,

खुद के नए बूत को बनाने की फिर तैयारी कर ली है।

हवाये कितनी भी विपरीत दिशाओ में अब चल ले,

हमने हवाओ से भी लड़ने की तैयारी अब कर ली है।

तुफानो से डगमगा रही जो नैया,तो मांझी का इंतजार क्यों,

खुद मांझी बनकर अपनी नैया बचाने की तैयारी कर ली है।

कितनी भी आ जायें विपदाएँ जीवन मे,उन्हें मिटाने को

अब  मैंने  भगवान से भी लड़ने की तैयारी  कर  ली है।

उड़ने वाले परिंदो को बंद कर लो कितना भी पिंजरों में,

लें उड़ेंगे पिंजरों को,जब उन्होंने उड़ने की तैयारी कर ली है।

कोई भी कितनीं कोशिश कर ले,पर ना किसी को रोक सकेगा।

एक बार जब किसी ने भी आगे बढ़ने की तैयारी कर ली है।।

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

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