Sunday, January 19, 2020

कत्ल हुआ और यह शहर सोता रहा

कत्ल हुआ और यह शहर सोता रहा
अपनी बेबसी पर दिन-रात रोता रहा ।।1।।
भाईचारे की मिठास इसे रास नहीं आई
गलियों और मोहल्लों में दुश्मनी बोता रहा ।।2।।
बेटियों की आबरू बाजार के हिस्से आ गई
शहर अपना चेहरा खून से धोता रहा ।।3।।
दूसरों की चाह में अपनों को भुला दिया
इसी इज्तिराब में अपना वजूद खोता रहा ।।4।।
जवानी हर कदम बेरोजगारी पे बिलखती रही
सदनों में कभी हंगामा, कभी जलसा होता रहा ।।5।।
बारिश भी अपनी बूँदों को तरस गई यहाँ
और किसान पथरीली जमीन को जोता रहा ।।6।।
महल बने तो सब गरीबों के घर ढह गए
और गरीब उन्हीं महलों के ईंट ढोता रहा ।।7।।
सलिल सरोज, नई  दिल्ली


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