Sunday, January 19, 2020

आधुनिक सच 

मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं  
सुबह आठ बजे नौकरियों पर जाते हैं
 रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं
अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
 अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं
कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
 भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं
मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
 अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं
फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
 उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं
परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
 केवल आयाश्आंटीश् को ही पहचानता है
दादा-दादी, नाना-नानी कौन होते है ?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है
आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
 टिफिन भी रोज रोज आया ही बनाती है
यूनिफार्म पहना के स्कूल कैब में बिठाती है
 छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है
नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
 जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है
उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
 कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है
जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
 देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है
वीक एन्ड पर मॉल में पिकनिक मनाता है
 संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है
वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
 वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है
कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
 आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है
वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
 मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है
धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
 मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है
कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
 जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है
माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
 बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है
बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
 जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं
क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
 घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं
हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं
 दाढ़-दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं
कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं
 वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं 
सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।
बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
 ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।
बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
 चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।
ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
 दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।
बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
 हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।
तेरे डालर से भला, मेरा इक कलदार।
 रूखी-सूखी में सुखी, 
अपना घर संसार।


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