मन का मैला बना विषैला
फिरता है मारा मारा
विक्षिप्त हो चुके मनः स्थति
गंद भरती उसकी उपस्थिति।
बिगड रहे हालात अब
लोकतंत्र की न लाज अब
हर तरफ घूरती आँखे
टकटकी लगाये सूनसान कब।
बस रहा शैतानो की वस्ती
लूटपाट से हो रही मस्ती
शरीफो के दो जून का मुहाल
एक मँहगाई दूजे समाज बुराहाल।
देखो भारत की दशा
भला किसने बनाई
जहाँ पूजी जाती है नारी
वहाँ कैसे फैल रहे दुराचारी।
तंत्र का कही तो स्क्रू ढीला
कसना होगा जोरो से
जगे रहो देशवासियों
खुद निपटो ऐसे भेडियों से।
जगो तुम भी जननी अब
अपनी अबला की पहचान छोडो
वो झांसी की रानी बनकर
उन दुराचारियो से निपटना सीखो
भरोसा रखो वतन पर
निदान अवश्य निकलेगा
नारी की गिरती सम्मान की खातिर
हर बंदे का लहू उबलेगा।
आशुतोष
पटना बिहार
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