उत्तर प्रदेश में बेहतर गन्ना मूल्य और बकाए भुगतान की मांग कर रहे किसानों ने उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की है। गन्ना बकाया की लड़ाई लड़ रहे किसानों ने इसका भुगतान उच्च न्यायालय की ओर से गठित निगरानी समिति के जरिए कराए जाने की मांग की है। किसानों का कहना है कि सरकार और अदालत के आदेशों की खुली अवहेलना कर बजाज चीनी मिल समूह न केवल उन्हे भुगतान नहीं कर रहा है बल्कि अपनी सहयोगी कंपनियों को मनमाने कर्ज बांट रहा है।
गन्ना बकाए के भुगतान को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सोमवार को किसानों की याचिका पर सुनवाई होनी है। याचिका में बजाज हिन्दुस्तान शुगर्स लिमिटेड के खिलाफ किसानों के साथ प्रदेश सरकार के गन्ना आयुक्त भी पक्षकार हैं। इस याचिका में किसानों ने कहा है कि अदालत के स्पष्ट आदेशों और निर्देशों के बाद भी बजाज चीनी मिल समूह ने बकाए का भुगतान नही किया है। इस संदर्भ में प्रदेश सरकार ने इसी साल 31 अगस्त की समय सीमा निर्धारित की थी। उच्च न्यायालय ने अपने 16 सितंबर और 19 सितंबर के आदेशों में प्रदेश सरकार से एक महीने के भीतर ब्याज सहित गन्ना मूल्य बकाए का भुगतान सुनिश्चित कराने को कहा था।
याचिकाकर्त्ताओं का कहना है कि प्रदेश सरकार और उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के बाद भी किसानों को भुगतान नही किया जा रहा है। इतना ही नही इस सबके बीच बजाज हिन्दुस्तान शुगर्स लिमिटेड ने अपनी सहयोगी कंपनी बजाज पावर जेनरेशन को 1600 करोड़ रुपये व एक अन्य कंपनी ओजस इंडस्ट्रीज को 500 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान किया है। किसानों का कहना है कि एक ओर जहां उन्हे न्यायालय व सरकार के आदेशों के बाद भी भुगतान नहीं किया जा रहा है वहीं बिना किसी ठोस कारण के सहयोगी व अन्य कंपनियों को कर्ज बांटे जा रहे हैं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में किसानों के कुल गन्ना बकाया में 40 फीसदी हिस्सेदारी अकेले बजाज समूह की चीनी मिलों की है। सरकार के लाख दावों के बाद भी किसानों के पूरे बकाया मूल्य का भुगतान नही हो सका है।
किसान नेता मुकेश सिंह चौहान व कर्ण सिंह का कहना है कि सरकार खुद के व न्यायालय के निर्देशों व आदेशों की लगातार अवहेलना कर रहे बजाज हिन्दुस्तान शुगर्स पर कोई कारवाई नही कर रही है जिसका खामियाजा हजारों किसानों को उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों को इस साल भी प्रदेश सरकार ने गन्ना मूल्य न बढ़ाकर निराश किया है दूसरी ओर उन्हें ब्याज सहित बकाया भुगतान दिलाने के लिए ठोस प्रयास नही किए जा रहे हैं।
याचिकाकर्त्ता किसानों ने मांग की है कि अब उन्हें बकाया भुगतान न्यायालय की ओर से गठित निगरानी समिति की देखरेख में कराया जाए।
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