हमारे देश की शिक्षा प्रणाली भी अजीब है। सभी को एक ही साँचे में ढालती चली जाती हैं। सभी के दिमाग का स्तर, सोचने समझने, विचारने एवं स्मरण करने की शक्ति में विभिन्नताएँ है परन्तु किसी एक विषय - वस्तु को लेकर हमारे व्यक्तित्व एवं बौद्धिक स्तर का आकलन करना उचित नहीं। वर्तमान में उच्च से उच्च अंक प्राप्ति ही विद्यार्थियों का एक मात्र लक्ष्य रह गया है। अब कुछ विद्यालय इस तरह के खुलने लगे हैं जिसमें वैज्ञानिक, तकनीकी, वाणिज्य आदि की शिक्षा दी जाने लगी है। ये विद्यालय भी दो प्रकार के होते हैं एक जिससे परीक्षा लेने के पश्चात दाखिला होता है और दूसरे जिनमें एक लम्बी रकम लेकर दाखिल होना है।
जिन्दगी में सफल होने के लिए कुछ गुणों की आवश्यकता होती है। यह न तो परिस्थितियों को समझने की सूझ-बूझ देती है और न उनसे संघर्ष करने की शक्ति/सत्य यह है कि जब पढ़ाई समाप्त हो जाती है तब जिन्दगी को असली पढ़ाई ठोकरे खा-खाकर आदमी सीखता है और वह ही सच्ची पढ़ाई होती है।
शिक्षा तो वह होती है जिसका एक - दो वाक्य भी यदि कान में पड़ जाए और मनुष्य उसे जीवन में ग्रहण कर ले तो उसका यह जीवन ही सफल न हो जाए बल्कि संसार-सागर से भी उद्धार हो जाए।
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