Tuesday, October 29, 2019

उपेक्षा से आहत हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी

 पाण्डवों का यक्ष रूप में अवतरित-धर्म के ब्यूह में फँसना और धर्मराज युधिष्ठिर का अपने चारों भाइयों को काल के ग्रास से निकालने की कथा लगभग हम सबको पता है। प्रश्नों की श्रृंखला में यक्ष ने युधिष्ठर से स्वतंत्र राष्ट्र की परिभाषा भी पूछी थी तो युधिष्ठिर का उत्तर था-
 ''वह राष्ट्र जिसकी अपनी पताका, अपनी भूमि और अपनी राष्ट्र भाषा होती है वह स्वतन्त्र होता है।''
 हिन्दू हिन्दी भाषी बहुल राष्ट्र की विडम्बना है कि हिन्दी आज विदेशी भाषा अँग्रेजी की चाकरी कर रही है। यह भारत एवं भारतीय जन मानस का दुर्भाग्य है कि आज राष्ट्र स्तरीय नेता जब हिन्दी दिवस पर भाषण देते हैं तो वह हिन्दी दिवस का उच्चारण हिन्दी डे करते हैं। यह भारतीयता के साफ दामन पर लगा एक बदनुमा दाग है कि आम भारतीय हर उस व्यक्ति को अपने से श्रेष्ठ समझता है जो अँग्रेजी बोलना जानता हो। किए गये सर्वेक्षण के अनुसार देश में कुल हिन्दी भाषी 95ः एवं अँग्रेजी भाषी 5ः हैं यह 5ः व्यक्ति 95ः लोगों पर अपना आधिपत्य जमाये हुए हैं।
 एक जातक कथा प्रसिद्ध है-एक व्यक्ति के पास बरगद का एक बहुत छोटा पल्लवित वृक्ष था। आसपास के क्षेत्रों में यह एक महान आश्चर्य का विषय था क्योंकि सामान्यतया बरगद के वृक्ष विशालकाय होते हैं। जब उसके किसी साथी ने इसका कारण जानना चाहा तो उस व्यक्ति ने बताया कि वह माह में दो बार पेड़ की जड़े काट देता था।
 वह व्यक्ति पेड़ की जड़े काटता था और भारत सरकार आज पूर्ण तत्परता के साथ वटवृक्ष हिन्दी की जड़े काटने में रत है।
 दुर्भाग्य है कि अपनी भाषा नीति होते हुए भी अधिनियम, संसाधन, धन आदि सब कुछ होते हुए भी हम हिन्दी भाषा को उन्नति की बुलंदियों पर पहुँचाना तो दूर उसकी हीन दशा के विषय में बोलना और सोचना भी पसंद नहीं करते हैं। हमें स्वतंत्र हुए 60 वर्ष हो चुके हैं और अभी तक सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का तिरस्कार एवं अंग्रेजी का महत्व नहीं घटा है बल्कि उसमें वृद्धि हुई हैं।
 सरकारी कार्यालयों एवं संस्थानों में हिन्दी का प्रयोग बहुत धीमी गति से हो रहा है। प्रत्येक राष्ट्र में भाषा भाव एवं विचारों में एक रूपता होनी चाहिए। परन्तु वर्तमान में हमारा लोकतंत्र वर्गों में विभाजित हो चुका है। आज देश का 5ः अंग्रेजी भाषी 95ः हिन्दी भाषी जनसमूह पर शासन कर रहा है। आज गाँव एवं नगर की भाषा अलग है जिसके कारण कि देश के शासन में 95ः लोगों की भागीदारी नहीं हो पा रही है। अग्रेजियत हमारे अन्दर पैठकर चुकी है और उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है महानगर मुम्बई जहाँ पर हिन्दी में लिखें नाम पट्टों का प्रतिशत 10ः से कम है। बापू ने राष्ट्रभाषा हिन्दी की उपयोगिता पर कहा था-
 ''राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा होता है।''
 उनकी आत्मा हिन्दी की इस अधोन्नति को देखकर निश्चित रूप से कचोट रही होगी, उसमें एक टीस उठ रही होगी कि राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाने से पूर्व मुझे भारतीयों को राष्ट्रभाषा की शिक्षा देनी चाहिए थी।
 भारतेन्दु कृत-''निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल'' की पंक्तियाँ हममें से अधिकांश ने पढ़ी होंगी और वास्तव में यह हमारा कर्तव्य बन जाता है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी को सम्बद्धता एवं सशक्ता की पराकाष्ठा तक पहुँचाया जाए, हमें कार्य केवल इतना करना है कि हम अपने आचार विचार व्यवहार में हिन्दी को लाएँ। हिन्दी में बोलें, हिन्दी में लिखें और हिन्दी में पढ़ें-
 जैसा कि आयरिश कवि टाॅमस ने लिखा है-
 ''कोई भी देश अपनी राष्ट्रभाषा की अवहेलना करके राष्ट्र नहीं कहला सकता है। राष्ट्रभाषा की रक्षा सीमाओं की रक्षा से भी अधिक आवश्यक है क्योंकि वह विदेशी आक्रमण को रोकने में पर्वतों नदियों और सेनाओं से अधिक समर्थ है।''
 हम बहुत सो चुके हैं और अब हमंे जागना ही होगा क्योंकि बहुत अधिक सोना मृत्यु की निशानी है।


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