उम्मीदों की चादर में कई सपने दफ्न हो गए।
जिन वृक्षो से की थी छाया की उम्मीदे,वो छाया
पतझड़ आने पर खुद ही कहीं गायब हो गयी।।
जीवन के गुजरते पलो में अक्सर ऐसा हुआ।
शुखे मुरझाये वृक्षो से भी कई बार ठंडी हवाओं
का अनुभव हुआ , शायद गिर रहे थे जो पत्ते
उन्होंने कहीं अंदर तक अंतर्मन को कहीं छुआ।।
उम्मीदों की हरियाली को फिर जीवन मे लाना होगा।
भविष्य के वृक्ष के लिए एक पौधा लगाना होगा।।
जीवन ना जाने कब,कहाँ कैसे विश्राम लेने लगेगा।
कभी ना कभी तुझे किसी की छाया में सोना होगा।
बस उसी छाया के लिए कर्मरूपी वृक्ष लगाना होगा।।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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