दोस्तों मानो या न मानो,
स्टैंडिग दावत में खाना,
बड़ी टेढ़ी खीर है।
एक दिन हमें भी,
जाना पड़ा बारात में,
बीवी बच्चे भी थे साथ में,
ऊपर से शोपीस,
अन्दर से सूखे थे।
क्या करें सुबह से भूखे थे।
जैसे ही खाने का सन्देशा
आया हाल में,
भगदड़ मच गई पण्डाल में,
एक के ऊपर एक बरसने लगे,
जो मिला सब झपटने लगे।
एक अपनी प्लेट में
थोड़े चावल लेकर आया,
उससे कहीं ज्यादा अपना
कुरता फाड़ लाया।
दूसरा गरीब व लाचार था,
इसलिए कपड़े उतारकर पहले से
ही तैयार था।
रोटी तो किसी तरह पा गया,
बस अचार का इन्तजार था।
अगली एक महिला थी,
जिसकी साड़ी पनीर की,
सब्जी से सनी थी।
किनारे पर खड़ी होकर,
नेत्रों को भिगो रही थी।
पड़ोसन से मंागी थी,
इसलिए रो रही थी।
अगला खुद लड़की का बाप था,
जिसके प्राण कण्ठ में अटके थे।
घराती सारे खा रहे थे,
बराती सड़क पर खडे़ थे।
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