Monday, October 21, 2019

श्रीनिवास रामानुजन् आयंगर

 कुछ व्यक्ति संसार में ऐसे भी पैदा होते हैं। जिनकी प्रतिभा को जन्मजात ही कहना चाहिए। वे स्वतः प्रसूत ज्ञान से समस्त विश्व को चैका देते हैं और सारी दुनिया उन्हें 'आश्चर्य' 'अद्भुत' की संज्ञा देती है।
 विलक्षण प्रतिभा के धनी उस गणितज्ञ का नाम था- श्रीनिवास रामानुजन् आयंगर।
 श्रीनिवास रामानुजन् का जन्म 22 दिसम्बर, 1887 को तत्कालीन मद्रास प्रान्त में हुआ था। रामानुजन् का जन्म स्थान तंजौर जिले के कुम्भकोणम नगर के पास 'इरोद' नामक गांव है। रामानुजन् के पिता के श्रीनिवास आयंगर एक मुनीम का कार्य करते थे।
 रामानुजन् के पिता को दुकान के कार्य से बहुत कम समय मिल पाता था। रामानुजन् के लालन-पालन की समस्त जिम्मेदारी इनकी मां कोमल अमल ने संभाल रखी थी। धार्मिक विचारों वाली कोमल अमल मन्दिर में भजन गाया करती थी। अतः रामानुजन् का बचपन मंदिर परिसर के पवित्र वातावरण में बीता। रामानुजन् की प्रारम्भिक शिक्षा तामिल माध्यम के स्थानीय विद्यालय में हुई। बाद में नाना ने रामानुजन् को मद्रास के एक माध्यमिक विद्यालय में भर्ती कराया। गणित से रामानुजन् का औपचारिक परिचय माध्यमिक विद्यालय में भर्ती के बाद हुआ। 11 वर्ष की उम्र में रामानुजन् मकान में किराये पर रहने वाले दो विद्यार्थियों के साथ महाविद्यालय स्तर के गणित के प्रश्न हल करने लगे थे। गणित के प्रति रामानुजन् का रुझान देख, इन्हें उच्च त्रिकोणमिति पर एस.एल. लोनी द्वारा लिखित पुस्तक दी गई। 13 वर्ष की उम्र में ही रामानुजन् ने उस पुस्तक की सभी समस्याओं को सरलता से हल कर दिया था। रामानुजन् ने गणित की पुस्तकों के प्रश्न हल करने में महारत हासिल करने के साथ ही अपने स्तर पर भी कई प्रमेय सिद्ध कर दिखाए थे। हाई स्कूल परीक्षा में रामानुजन् ने गणित का प्रश्न पत्र निर्धारित समय से आधे समय में ही हल कर लिया था।
 16 वर्ष की उम्र में जार्ज कर द्वारा लिखी गई पुस्तक 'ए सिनाॅप्सिस आफ एलिमेन्टरी रिजल्ट्स इन प्योर एण्ड एप्लाइड मैथेमेटिक्स' ने रामानुजन् को पूर्ण रूप से गणित की दुनिया में पहुंचा दिया।
 चारों ओर से प्राप्त प्रशंसा रामानुजन् को रास नहीं आई। इण्टर की परीक्षा का परिणाम आया तो रामानुजन् ने गणित में बहुत अच्छे अंक आए मगर अन्य विषयों में असफल रहे थे। पूर्व में स्वीकृत छात्रवृत्ति कोई काम नहीं आई।
 अतः डिग्री लिए बिना ही रामानुजन् को औपचारिक अध्ययन छोड़ना पड़ा। अपने अध्ययन के बल पर रामानुजन् कभी भी डिग्री प्राप्त नहीं कर सके। 22 वर्ष की आयु में रामानुजन् का विवाह 9 वर्ष की कन्या जानकी अमल से हुआ। अब तो एक और दायित्व आ पड़ा था। घर की आर्थिक दशा ऐसी नहीं थी कि परिवार का पोषण हो सके। मजबूर होकर उन्हें नौकरी की तलाश करनी पड़ी। पढ़ाई तो चल पानी मुश्किल ही थी। नौकरी पाने की उम्मीद में वह 'इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी' के संस्थापक श्री रामास्वामी अय्यर जो डिप्टी कलेक्टर भी थे, से मिलने गए। उन्होंने महसूस किया कि यहां देहात में उसकी प्रतिभा विनष्ट हो जायेगी, अतः उन्होंने एक परिचय-पत्र देकर उसे पी.बी. शेष अय्यर के पास कुम्भकोणम् भेज दिया।
 इसी बीच दीवान रामचन्द्र राव के प्रयास से मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के सभापति सर फ्रांसिस स्प्रिंग ने रामानुजन् मंे रुचि ली। उनकी राय पर इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कालेज के फेलो प्रो० हार्डी को पत्र लिखा- 'मुझे विश्वविद्यालय की शिक्षा नहीं मिली है। परन्तु साधारण स्कूल का पाठ्यक्रम समाप्त कर चुका हूँ। स्कूल छोड़ने के पश्चात् मैं अपना समय गणित पर लगाता रहा हूं। मैंने श्क्पअमतहमदज ैमतपमेश् का विशेष अध्ययन किया है। अभी हाल में मुझे आपका श्व्तकमत व िप्दपिदपजलश् शीर्षक प्रकाशन मिला। उसके 36 वें पृष्ठ पर लिखा है कि अभी किसी दी हुई संख्या से कम श्च्तपउम छनउइमतश् (अभाज्य संख्या) की संख्या के लिए कोई निश्चित राशिमाला नहीं मिल सका है। मैंने एक ऐसी राशिमाला खोजी है जो वास्तविक परिणाम के अत्यन्त निकट है। उसमें जो अशुद्धि आती है, वह नाम मात्र और त्याज्य है। कहना न होगा कि रामानुजन् के परचे देखकर प्रो० हार्ड़ी कितने प्रभावित हुए।प्रो० हार्डी की इच्छा थी कि रामानुजन् यदि कुछ दिन कैम्ब्रिज में रहें तो उनकी मेधा और कुशाग्र हो जाएगी तथा उनके कुछ गणित ज्ञान का परिष्कार भी। पहले तो धार्मिक अड़चने सामने आई लेकिन अंततः वे राजी हो गये।  मद्रास गवर्नमंेट की स्वीकृति से मद्रास विश्वविद्यालय ने 250 पौण्ड की वार्षिक छात्रवृत्ति स्वीकार की। साथ में इंग्लैण्ड का मार्ग व्यय तथा वहां का प्रारम्भिक व्यय भी देना स्वीकार किया।
 रामानुजन् ने 17 मार्च, 1914 को इंग्लैण्ड की यात्रा आरम्भ की। अप्रैल में वह कैम्ब्रिज पहुंचे। ट्रिनिटी कालेज ने भी 4601 पौण्ड वार्षिक की छात्रवृत्ति प्रदान की। इंग्लैण्ड पहुंचने पर प्रो० हार्डी ने उनका जोरदार स्वागत किया। अन्य गणितज्ञों से मिलवाया।
 जब उनके शोध पत्र वहां के पत्रों में छपे तो पाश्चात्य जगत विस्मित हो उठा। प्रो० हार्डी ने महसूस किया रामानुजन् का गणित के कुछ क्षेत्रों में पूर्ण अधिकार है लेकिन कुछ चीजों की उन्हें कम जानकारी है। चूंकि रामानुजन् ने कोई विधिवत् पाठ्यक्रम का अध्ययन तो किया नहीं था, अतः प्रो० हार्डी ने उन चीजों को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लिया।
 रामानुजन् ब्राह्मण परिवार के थे और धर्म-कर्म में विश्वास करते थे। इंग्लैण्ड की कडी सर्दियों में स्नान करते। कपडा उतार कर भोजन बनाते। ऐसे में 1917 में उनमें तपेदिक के लक्षण दिखाई पड़ने लगे। डाॅक्टरों की राय में इंग्लैण्ड की जलवायु उनके स्वास्थ्य सुधार में बाधक थी, अतः उन्हें भारत लौटाने का निश्चिय किया गया। 27 फरवरी, 1919 को उन्होंने इंग्लैण्ड छोड़ा। 27 मार्च को रामानुजन् बम्बई पहुंचे और 2 अप्रैल को मद्रास। वह वहां से अपने गांव के पास कावेरी के तट पर स्थित कोडुमंडी पहुंचे। मगर स्वास्थ्य में सुधार न हुआ। हालात और खराब होते गये। अंत में 26 अप्रैल, 1920 को 33 वर्ष की अल्पायु में रामानुजम् दिवंगत हो गये।
 रामानुजन् ने आधुनिक विश्व के गणित मानचित्र पर भारत को विशिष्ट स्थान दिलाया। रामानुजम् ने यह भी प्रतिपादित किया कि आस्था मेधावी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। रामानुजम् को सम्पूर्ण विश्व के गणितज्ञों का सम्मान मिला है। देश व तमिलनाडु राज्य विशेष रूप से रामानुजम् को याद करता है। कई पुरस्कार तथा सम्मान उनकी याद में प्रदान किए जाते हैं जिसमें 10,000 डाॅलर का सरस्त ;ैींदउनहीं ।तजे ैबपमदबम ज्मबीदवसवहल - त्मेमंतबी ।बंकमउल) रामानुजम् पुरस्कार सबसे महत्वपूर्ण है। यह गणित में उल्लेखनीय कार्य करने हेतु दिया जाता है। रामानुजन् कठिन परिस्थतियों में भी निरन्तर आगे बढ़ने के आदर्श के रूप में भारतीय प्रतिभाओं को प्रेरणा देते रहेंगे। श्रीनिवास रामानुजन् की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में देश ने वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष तथा श्रीनिवास रामानुजन् के जन्मदिन 22 दिसम्बर को राष्ट्रीय गणत दिवस घोषित किया। इन आयोजनों की सार्थकता इस बात में निहित है कि रामानुजन् जैसी प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें उसी तरह तराशा जावे जिस तरह प्रो० हार्डी ने रामानुजन् को तराशा था।


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