दैनिक जीवन में शिष्टाचार की कितनी अहमियत है, यह हम सब समझ सकते हैं। जो शिष्टाचार का पालन करता है, वह निर्धन और कम पढ़ा लिखा होने पर भी आदर पाता है लेकिन धनिक और शिक्षित को अशिष्ट व्यवहार करने पर निरादर ही मिलता हे। शिष्टाचार के गुण जन्मजात भी हो सकते हैंै। लेकिन परिवार के अतिरिक्त संगी-साथियों का व्यवहार आचार विचारों को प्रभावित करते रहते हैं। देखा जाता हैं कि पन्द्रह वर्ष की आयु तक आचार विचार के सीखे, समझे गुण आजीवन उसके व्यतित्व पर हावी रहते हैं। अतः हर माता-पिता का यह फर्ज बनता है कि वह अपनी संतानों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ायें, उन्हें किससे किस तरह व्यवहार करना चाहिए इसकी जानकारी देनी चाहिए। आजकल व्यस्तता की वजह से अधिकतर माता-पिता अपनी संतानों को उतना समय नहीं दे पाते जितना देना चाहिए, यह ठीक नहीं है। हमारे बच्चे कल सुसंस्कृत एवं शिष्ट नागरिक बनें, यह सोच रखना बहुत जरूरी हैं।
विद्यार्थी और शिष्टाचार
1. छात्रों को अपने अध्यापक के सामने सावधान की स्थिति में खड़े होना चाहिए।
2. अध्यापक के कक्षा में प्रवेश होते ही खड़े होकर अभिवादन करना चाहिए।
3. अध्यापक के रहते हुए कक्षा में शोर करना या मजाक बनाना अच्छा नहीं हैं।
4. अध्यापक के निकट अथवा उनकी कुर्सी पर बैठना अशिष्टता है।
5. कई बच्चे रबड़ को दाँतों से काटते हैं, पेंसिल कान में या मुँह में डालते हैं, यह आदत ठीक नहीं है।
6. अपने सहपाठी से ली गई कोई भी चीज उसे समय पर और सुरक्षित रूप में वापस करनी चाहिए।
7. अपनी पुस्तकों, काँपियों और बस्तों को साफ-सुथरा रखें।
8. स्कूल में गन्दगी न करें, गन्दगी को दूर करने की कोशिश करें।
9. अपने सहपाठी से हँसी-मजाक तो करें लेकिन असभ्य भाषा का इस्तेमाल न करें।
10. विद्यालय में साफ और स्वच्छ परिधान पहिनकर आना चाहिये।
11. सदैव अच्छे और शिष्ट छात्रों से दोस्ती करें।
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