संकल्प और लक्ष्य मनुष्य के कार्यों को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। आदतों को संकल्प और लक्ष्य की शक्ति द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है। व्यर्थ में बड़े से बड़ा नुकसान हो जाता है और जीवन की महत्वपूर्ण बातें धरी की धरी रह जाती है। यदि हम कोई लक्ष्य लेकर चलते हैं तो उसे संकल्प द्वारा, कर्म द्वारा, यथार्थ रीति द्वारा और आदतों को नियन्त्रित रखते हुये पूर्णतः की ओर बढ़ सकते हैं। जिस प्रकार सोना को साफ करने तथा उसमें चमक लाने के लिये आग में तपाना पड़ता है, उसी प्रकार सदा अपने लक्ष्य और संकल्प में अटल रहना पड़ता है। सभी के जीवन में उत्थान तथा पतन का भी समय आता है। विवेकी पुरुष की दृष्टि में परमात्मा की प्राप्ति श्रेयस्कर है। परमात्मा और आत्मा का संयोग उनके एकत्व का बोध परमार्थ माना गया है। जीवन में सुख - शान्ति तथा अध्यात्मिक उन्नति का मुख्य आधार भी यही है। दृष्टि से वृत्ति स्वयं बदल जाती है। वृत्ति के अनुसार बु(ि प्रभावित होती है। गुण और विशेषताऐं व्यक्ति की बु(ि से ही समझी जाती है। जैसे - हंस की पहचान उसके मोती ग्रहण करने करने से होती है। बु(ि संस्कार का एक वाहन है। बु(ि को श्रेष्ठ बल भी कहा गया है। बु(ि द्वारा ही संकल्प को दिशा दी जा सकती है। अभी नहीं तो कभी नहीं का संकल्प लक्ष्य तक ले जाने में सहायक होता है। व्यक्ति स्वयं भी विशेष है, और समय भी विशेष है। संकल्प को छोड़कर व्यर्थ की तरफ नहीं जाना चाहिए। यदि व्यक्ति हीन भावना से ग्रसित है तो वह संकल्प भी नहीं कर सकता है । विपरीत परिस्थितियों को देखकर अंशमात्र भी विचलित नहीं होना चाहिये।
No comments:
Post a Comment