प्रस्तावना- ऋग्वेद में कहा गया है कि: यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता' यह कथन मनु का है इसका अर्थ है कि ''जहाँ नारी की पूजा होती है' वहीं देवता निवास करते है।'' पूजा का अर्थ है किसी स्त्री को गौरव दीजिए उसका सम्मान करो, उसकी शिक्षा की उचित व्यवस्था हो, उसके जीवन स्तर में सुधार हो जिसके फलस्वरूप प्रत्येक देश में स्त्रियों के जीवन में सुधार की विशेष आवश्यकता का अनुभव किया गया है। भारत जैसे प्रगतिशील देश के लिये तो स्त्री जीवन का विकास अत्यन्त आवश्यक है। धार्मिक रूढ़ियों में बँधे हुए अन्धविश्वसनीय भारत की स्त्री के जीवन के विकास के लिए स्वतंत्र भारत में हर सम्भव प्रयास हो रहे है।
''जो हाथ पालने को झुलाता है, वह संसार का शासन भी करता है'' यह अंग्रेजी भाषा की कहावत है। इससे स्पष्ट होता है कि माँ का बालकों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। एक बार नेपोलियन ने कहा था “If you give me good mathers, I will give you a good nation.”
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: जहाँ तक मेरा विचार है कि प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल में प्रत्येक (काल) युग में नारी का किसी न किसी रूप में शोषण होता रहा है। यदि हम प्रत्येक युग में नजर डाले तो तस्वीर उभरती है।
प्राचीन काल: वैदिक काल में नारी को वे सम्पूर्ण आर्थिक राजनैतिक धार्मिक, सांस्कृतिक अधिकार प्राप्त वैदिक काल तक समाज ने नारी के जीवन को नरक बनाना शुरू कर दिया था।
बौद्धकाल: बौद्धकाल में महात्मा बुद्ध ने स्त्रियों का संघ में प्रवेश वर्जित कर दिया था लेकिन अपने प्रिय शिष्य 'आनन्द' के विशेष आग्रह पर गौतम बुद्ध ने नारियों को संघ में प्रवेश की अनुमति दे दी लेकिन उस समय तक स्त्रियों की दशा दयनीय स्थितियों की ओर प्रवेश कर चुकी थी।
मुगलकाल- मुगलकाल में नारियों की दशा बहुत ही सोचनीय हो गयी थी। अनेक प्रकार की कुप्रथायें और स्त्रियों को अनेक बन्धनों में जकड़ दिया गया था।
आधुनिक काल- आधुनिक काल में नारियों की दशा बहुत खराब हो गयी। अनेक समाज सुधारकों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ उन्होंने उनकी स्थिति को सुधारने के लिए अनेक प्रयास किये। उदाहरणार्थ- स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती, राजा राममोहन राॅय, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी, महात्मा ज्योतिबा राव फुले आदि।
नारी के जीवन में आने वाली बाधाएँ- नारी के कष्टों व उसकी दुर्दशा को देखकर मुझे सुमित्रानन्दन पन्त की कविता स्मरण हो जाती है।
''अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में दूध और आँखों में पानी।''
आज समाज में नारी के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। नारी का अशिक्षित होना। वह उन प्राचीन कुप्रथाओं व रूढ़ियों को मानने के लिए विवश है। जिनका कोई औचित्य नहीं है। समाज को नारियों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए। इसके लिए हम सभी को आगे जाना चाहिए। समाज में आज भी पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह प्रचलित है तो और दहेज के दानव ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसमें अनेक कन्याओं की बलि दी जा रही है। साथ ही आजकल कन्या भ्रूण हत्या एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में समाज में प्रचलित हो गयी है उन्हीं दहेज लोभियों को कविता के माध्यम से सम्बोधित करते हुए मैं कह रहा हूँ।
''चूर किये मासूम स्वप्न सब कन्या का जीवन मुरझाया। ओ मेरे युग के प्रहरी तुम, इस कलंक का करो सफाया।।''
नारी जीवन के विकास के लिये प्रयत्न: नारी जीवन के विकास के लिए समाज को ही नहीं सरकार को भी प्रयत्न करना चाहिए सबसे पहले प्रत्येक बालिका को शिक्षित करना होगा और जिनकी आर्थिक स्थित अच्छी न हो उन्हें छात्रवृत्ति देकर शिक्षा की ओर प्रेरित किया जाना चाहिए और समाज में जो दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, आदि सामाजिक कुरीतियों के लिए कड़े नियम कानून बनाने होंगे। समाज में जागरूकता पैदा करनी चाहिए। संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण बिल पास कर उनके विकास के मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए।
अन्त में: जहाँ तक मेरा मानना कि नारी के विकास को लेकर प्रत्येक व्यक्ति ऊँची-ऊँची बातें करते हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। उदाहरण के तौर पर भारतीय संसद में ही महिला का कितना प्रतिनिधित्व है जो एक गणना मात्र है। हर नेता व मंत्रीगण महिलाओं के विकास की बातें करते हैं। लेकिन जहाँ संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण का मामला आता है। इसका विरोध होता है। ये है इनके चेहरे का असली मुखौटा। अतः मेरा विचार है कि समाज को नारी विकास में एक अहम् भूमिका निभानी होगी। समाज से कुप्रथा को बाहर कर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना होगा, जिसमें महिलाओं की समान भागीदारी होगी क्योंकि नारी और पुरूष दोनों एक गाड़ी के दो पहियों के समान है। जिससे परिवार रूपी संस्था चलती है। स्वस्थ परिवार से ही स्वस्थ समाज की स्थापना होती है। समाज में नारी के विभिन्न रूप है। माँ, पत्नी, पुत्री, बहन जो अपने कर्तव्यों का सफलता पूर्वक निर्वाह करती है। विश्वविख्यात साहित्यकार डाॅ0 रवीन्द्र नाथ टैगोर ने नारियों की गरिमा को बढ़ाते हुये कहा ''पवित्र नारी दुनिया की सर्वोत्तम कृति है।'' अतः समाज को नारियों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए। नारी शक्ति का प्रतीक है। इसी के साथ मैं अपना लेख समाप्त करता हूँ।
''कोमल है कमजोर नहीं, शक्ति का नाम ही नारी है।
सबको जीवन देने वाली, मौत तुझी से हारी है।।
No comments:
Post a Comment